प्रभात समय
युगल उठ शैय्या पर ही बैठे है,सब सखिया घेर कर खडी हुई...
वार्ता आरंभ हुई...
सखी-राधे,रात्री मे तुमने शयन तो ठीक से किया न...
(भौहो को मटकाकर,श्यामसुन्दर की ओर संकेत करके)मैने रात्री मे एक भ्रमर को तुम्हारे कक्ष की ओर आते देखा था...
ललिता सखी-हाँ,राधे
मैने भी देखा था,अति विशाल भ्रमर....
वह बिना रोकटोक तुम्हारे कक्ष मे घुस चला...
(राधे मुस्कुराकर मुख नीचे कर लेती है)
सखी-आगे भी तो कहो ललिता सखीजु
ललिता सखी-मैने निकुंज मे एक छिद्र से झाककर जब देखा
तो क्या देखती हू....
(राधे ने व्याकुल सी हो ललिताजु की ओर देखा,ललितासखी मुस्कुरायी)
ललिता सखी-उस समय राधे तो नयन मूंदे निश्चिंत सी शैय्या पर लेटी थी,मुख पर आनंददायक शीतलता थी...
सखी-फिर,फिर क्या हुआ...उस भ्रमर ने क्या किया...
ललिता सखी-यह देख,वह भ्रमर...दबे पाव राधे के समीप पहुचा
जाकर चुपचाप उनके चरणो के समीप बैठ गया.....
(श्यामसुन्दर मुस्कुराते है)
ललिता सखी-(मुस्कुराकर)सखी,वह अति निपुण भ्रमर प्रतीत होता था,यू बैठा की राधे को तनिक सा भान भी न हुआ...
(सब सखिया हँसने लगती है)
ललिता सखी-किन्तु भला हो,इन पवन देव का....की तभी एक शीतल पवन का झोका आया और राधे जग गयी....
वो चकित सी उठ बैठी...भ्रमर,राधे के समीप जाने लगा.....
राधे-चुप कर ललिते...
(राधे उठकर जाने लगती ह,श्याम भी,पीछे से ललिता सखी तेजी से)
पीछे से सब सखिया भी.....
Saturday, 21 May 2016
राधे,रात्री मे तुमने शयन तो ठीक से किया न... आँचल
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