Sunday, 29 May 2016

पुष्पों की पायल , आँचल सखी लीला भाव

रात्री का समय,एक सखीजु कुंज मे पुष्प गूथ रही है.....दूसरी सखी आकर पूछती है,सखीजु ये क्या बना रही हो......
सखीजु बोली...सखी श्रीजु के रात्री श्रृंगार के लिए पुष्पो की पायल बना रही हू....
आहा,पायल सखीजु....एक बन गयी क्या?
न सखी अभी एक भी न बनी....जो आप कहो तो एक मै बना दू सखीजु....
सखीजु,हा क्यु नही....शीघ्रता कर,बना पायल।
चमेली के पुष्पो की एक लडी पिरोकर नीचे गोल गोल घुमाकर पायल बनाई गयी,हर घुमाव के बीच एक छोटा सा लाल रंग का जाने कौन सा पुष्प पिरोया गया।
अन्ततः पायल तैय्यार हुई और दोनो सखिया इसे लेकर श्रीजु के पास चली।
वहा पहुचकर क्या देखती है....आह.....राधे.....
राधेजु खडी हुई है,उन्होने बहुत हल्के जामनी रंग की साडी पहन रक्खी....वह साडी ऐसी की कंधे पर से फिसल नीचे आ रही....सर पर आँचल नही आज,आँचल का नीचला छोर जमीन पर पडा है.....वह वस्त्र इतना झीना की सब अंग......
सखियो ने चमेली के पुष्पो से क्या अद्भुद श्रृंगार किया हुआ है राधेजु का...सब गहने पुष्पो के ही है।
मांग मे टीका,कानो मे कांधे को छूती पुष्पो की लडिया....गले मे एक छोटी वक्षस्थल तक व एक नितंबो से नीचे तक आती पुष्पमाल....
यू ही पुष्पो से निर्मित सुंदर कमरबंद.....
सखियो ने बहुत हल्के से बल डालकर वेणी रचना की...बस कुछ खुली सी ही है।
राधे स्वयं से ही लजायी सी ,नयन झुकाए खडी है....अधरो पर वो मोहनी सी टेढी सी मुस्कान है.....
दोनो सखिया तो यू देखती ही जा रही....तभी एक सखी राधे की साडी को नीचे से कुछ उठाकर पायल बाँधने को कहती है।
वो सुन्दर कोमल चरण,उनमे चारो ओर आलता लगा है.....यू पूर्ण चरण दर्शन,वो आभा....सखी पायल बांध देती है।
अब सखिया राधे को लेकर रसराज ,रसिकशेखर के पास ले चली....राधे को उनके प्राणो को सौप सब चली गयी।
यहा की भूमि पर हर ओर हरी हरी कोमल घास....सखियो ने इसी पर पुष्पो से लगभग एक हाथ ऊँची शैय्या का निर्माण किया है,व एक ओर कुछ अधिक पुष्प लगा सिरहाना बना दिया है.....
ये कुछ अंधकारपूर्ण रात्री,चंद्रमा की चांदनी न के बराबर ही है.....
किंतु कुंज का तो दृश्य ही कुछ ओर है.....
यहाँ तो दो प्रकाश पुंजो से ये निकुंज प्रकाशवान है.....
ऐसा लग रहा है मानो राधे के प्रत्येक अंग का प्रत्येक अणु ही चंद्र्मा है और इस प्रकार करोडो करोडो चंद्रमाओ ने मिलकर राधेजु की आकृति धारण कर ली हो....यह कुछ ऐसे है,की बीच मे तो विशाल विशाल शीतल ज्योतिर्पुंज है जिसके चारो ओर किरणो कि रूप मे ज्योति फैली हुई है.....दोनो युगल इसी भाँति कुंज मे प्रेमरस मे निमग्न होने को आतुर है.....दोनो इस प्रकार शुशोभित है मानो रात्री मे किसी पुष्प पर जुगनु,मानो जल मे दिखते चंद्र देव की छबि......किंतु ये तो अति अति न्यूनता मे ही कहा गया(ठीक ठीक उपमा नही)......
अब श्यामसुन्दर ने राधे का दायाँ कर व बायाँ कंधा पकड उन्हे शैय्या पर बैठाया...
राधे नववधू सी सकुचायी सी नैनो को झुकाये बैठ जाती है.....
श्यामसुन्दर इनके मुख को अपने दोनो करो मे ले कुछ उपर को किये,तो लगा मानो किसी नीले कमल ने चंद्रमा को ही पकड रक्खा है,कौन सी कांति किसकी है कोई भेद नही.....श्यामसुन्दर इनके कुछ खुले केशो को पूर्ण मुक्त कर देते है.....वो श्यामवर्ण केश फैल जाते है चंद्रमा के चारो ओर.....कुछ अलके झूमने लगती है कपोलो पर....तब ये ही.....यही एक ओर एक पान रखा है,सखियो ने शरारत करके एक ही पान रख छोडा आज....
रसराज कुछ दुविधा मे राधे को निहारते है़ ,राधे भी नयनो की दायी कोर से तिरछी चितवन कर उनकी ओर दृष्टि करती है......
ये देख रसराज मुस्कुराकर,परम आनंदित होकर पान अपने मुख मे रख लेते है.....राधे अपना मुखचन्द्र उठाकर प्रश्नवाचक सी मुद्रा मे उनकी ओर देखती है...
किंतु तभी वो इन रसिकशिरोमनि की मुस्कुराहट से इनके अनुरोध को जान लेती है....
ये रसराज,रसलम्पट राधे की ओर झुक अपने अधरामृत से सिक्त पान को अपने अधरो से राधे के अधरो को मिला पान कराते है.....राधे कुछ पीछे हटती है......
इसी सब कौतुहल मे राधे की माला टूट गयी है,परंतु अब दोनो ही इस प्रेम रस मे डूबते जा रहे....अनेकानेक चेष्टाओ से.....और दो ज्योतिर्पुंज एक होते जा रहे है.....

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