हित सम्प्रदाय और श्री राधा 4
जहांलगि दुति अरु कांति बखनी, कुंवरि अंग देखत सकुचानी।
छवि ठाड़ी आगे कर जोरै, गुन की मलाचौंर सिर ढ़ोरै।।
चित्र भई तेहि ठां चतुराईै,पंग भई चितवत चपलाई।
छवै न सकत अंगनिमृदुताई,अति सुकुंवार कुंवरि तन माई।।
यातै उमा कछु उर आई, बात खोज बिनु जात न पाई।
रति इक हेम छविहि उर आनै, ताहि समुझ्रिा सुमेर पहिचानै।।
एसौ रूप प्रकास तहां, नख की सम नहिं भान।
तेहि ठां उमपा-दीपकौ, धरिबौ बड़ौ अयान।।[1]
श्री राधा के अद्भुत रूप- वैभव को समझने में सब से बड़े सहायक श्याम सुन्दर हैं। ‘वे रस के सागर हैं और अपने प्रताप, रूप, गुण, वय और वल के लिये प्रसिद्ध हैं। किन्तु वे श्रीराधा के किंचित् भ्रम-विलास से नाद-मोहित मृग के समान विथकित हो जाते हैं।'
(जय श्री) हित हरि वंश प्रताप, रूप, गुण, वय, बल श्याम उजागर।
जाकी भ्रू-विलास बस पशु इव दिन विथकित रस-सागर।।[2]
श्री सहचरि सुख कहते हैं ‘जो प्रजांगनाऐं में अपने रूप- प्रकाश से चन्द्र को पराजित करती हैं, वे नंदकुमार को देखकर चौधिया जाती हैं। श्रीहरि श्याम तो तभी दीखते हैं जब वे कीर्ति- सुता[3] के निकट आते हैं।'
चक चौधति लखि कुंवर कौं ससि जीतत जे वाम।
आवत ढि़ंग कीरति सुता तबही हरि दीसत स्याम।।
इतना ही नहीं, ‘नंद किशोर ने सब ब्रज वासियों के हृदयों को अपने श्याम रंग से रंग दिया था। श्रीराधा ने अपने गौर वर्ण से उन सबको गौर बना दिया, यह देखकर नंद-नंदन का सारा रूप- गर्व गल गया। जिस प्रकार सोने की परख कसोटी पर कसे जाने पर होती है, उसी प्रकार रूप की परख रूपवान के हृदय में उसकी लकीर खिंच जाने पर होती है।'
रचे करेजा सांबरे सब व्रज नंद किशोर।
हिये गौर राधा किये तब बिक गई सबै मरोर।।
कनक कसौटी पर कसत जब होत बरन कौ ठीक।
परख रूप की खिंचत है हो, रूपनि हीये लीक।।[1]
श्री राधा के गौर वर्ण का प्रभाव केवल ब्रजवासियों के हृदयों पर ही नहीं पड़ता, वे जिसे फुलवारी के पास एक क्षण के लिये खड़ी हो जाती हैं, वहां के पत्र और फूल पीत वर्ण के हो जाते हैं।
नैकु होत ठाड़ी कुंवरि जिहिं फुलवारी मांहि।
पत्र-फूल तहां के सबै पीत बरन ह्रै जाहिं।।
जयजय श्यामाश्याम । क्रमशः ...
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