[5/2, 23:28] laddugopal shamli fb: ये एक अलग सी सुबह है कुंज की....आज कुंज मे इतनी सवेरे सवेरे काफी चहल पहल है....सब सखिया इधर से उधर लगभग दौडती सी ही तैय्यारियो मे व्यस्त है....एक नयी सी सखी जो अभी अभी कुंज मे आई..सब को ऐसे देख..उसने एक सखी से पूछा...आज सब कहा जा रहे है...तो सखी बोली आज श्रीजु का जमुना स्नान का मन है रहय्यो था...जा ही कू तैय्यारिया चल रही...वो सखी जिसका नाम प्यारी सखी था,पूछी जमुना स्नान कु कहा तैय्यारी करनी पडेगौ...तो सखीजु बतायी प्रियाप्रीतम के वस्त्र ,आभूषण,पुष्प,आदि आदि ले जाने की व्यवस्था करनी पडेगौ ना...तो सखी कही अच्छा...अब प्यारी सखी ने पूछा मै कहा करू,मौहै भी तो कछु सेवा दीजौ...तब सखीजु कही...की सखी तू ऐसो कर पुष्प चुन ला..कुछ सखियो के संग जा के...पर शीघ्रता करना...वो सखी अपनी प्रिय सखी और कुछ दूसरी सखियो संग....जल्दी ही पुष्प ले आई वो...अब सबने चलने की तैय्यारी की.....कुछ सखिया आगे कुछ पीछे बीच मे श्री प्रियाप्रीतम...सब हसी ठिठोली करते हुए जा रहे...तभी कुछ दूर जाकर जमुनाजी पर जाने वाला मार्ग दो भागो मे बट गया...सब वही रूक गए...तब श्यामसुन्दर ने कहा..,सखियो,चलो एक काम करते है...हम दो टोली बना लेते है..एक मे मै और एक मे श्री प्रिया जु नायक रहेगी...और हममे से एक टोली एक रास्ते और दूसरी टोली दूसरे रास्ते कू जावेगी...दोनो मे से जो पहले पहुचेगी उसे आज पूरे दिन हारने वाली टोली से कुछ भी कराने का अधिकार होगा...व हारने वाले टोली उनकी दास बनकर रहेगी पूरे दिन...बोलो मंजूर है...तो ललिता सखी बोली...परन्तु हार जीत का निर्णय कैसे होगा...तो श्यामसुन्दर कहे..की वृंदासखी पहले ही वहा पहुच जाऐगी फिर वही निर्णय करेगी...तो सखियो ने मान ली...अब श्यामसुन्दर ने अपनी टोली की सखिया चुनना शुरू की...अष्टसखिया तो सब श्रीजु की ओर ही रही..जब कान्हा ने सखिया चुन ली तो अंत मे श्रीजु से कहे की प्यारी सखी भी मेरी ओर रहेगी...प्यारी सखीःश्रीजु मै नही,मै तो आपकी ओर ही रहूगी...श्रीजु ने कही चली जा प्यारी सखी...तो उन्है जाना पडा...अब सब चल दिए..कुछ दूर जाकर कान्हा सखियो से बोलेः सुनो,मै एक छोटा रस्ता जानता हू,जिससे हम जल्दी पहुच जाऐगे..तब उन प्यारी सखी ने कहाः देखो तुम छल करोगे मै सबसे कह दूगी,हाँ...मै झूठ नाय बोलूगी श्रीजु से...श्यामसुन्दर कहैःठीक है कहै दियो,पर चल तो मेरी पंडिताईन...सब छोटे मार्ग पर चले..पर कान्हा सबकू दौडा दौडा के ले जाय रहयो...सगरी थक गई...तब प्यारी सखी वही एक शिला पर बैठ गई...बोलीः तुमने तो भगा भगा कर प्राण निकार दीये,मै न चलूगी ओर..तब प्यारेजु कहे..देख,मै यही छोड जावूगो...वो बोली जाओ,मै आ जाऊगी खुदही...प्यारेजु कहे,पर यहा वन मे जंगली पशु घूमते है देख लिजो...वो कही ,हा हा देख लूगी...प्यारेजु चले गए..तब उन प्यारी सखी को अचानक शेर की दहाड सुनी,बैचारी डर के मारे भागी पीछे पीछे...आखिर मे श्यामसुन्दर पहुच ही गए...देखा तो श्रीजु और उनकी टोली पहले से ही आय गयी थी...अब तो प्यारे जु लगे प्यारी सखी को दोष देने...या ही के कारण हार गयो मै...मोहै ना पतो,मै नाय मानू...ललिता सखीजु बोली..अच्छा जी,छल भी किये रहे और हार भी नाय मानो...मोये सब पतो है...कान्हा को हार माननी पडी....
[5/2, 23:30] laddugopal shamli fb: अब बारी आई सजा देने की,तो ये दायित्व ललिता सखीजु को सौपा गया...वो बडी प्रसन्न है गयी,और बोली।..सजा ये है की...पहले तोआज श्यामसुन्दर श्रीजु का उबटन तैय्यार करेगे ...और उनकी बाकी टोली उनकी सहायता करेगी...सुनकर श्यामसुन्दर ने प्रेमपूर्ण नैनो से ललिता सखीजु को निहारा मानो धन्यवाद कर रहे सजा का...साथ ही ललिता जु ने शर्त रखी की समय सीमा के भीतर ही उन्हे ये तैय्यार करना है...समय मापने के लिए एक छेद वाला घडा मंगाया और बोली जब तक इस घडे का सारा जल बह जाए तब तक उबटन तैय्यार हो जाना चाहिए.... अब श्यामसुन्दर ने उबटन बनाना शुरू किया...चंदन,खस,केसर,कपूर,सुगंधित औषधिया आदि से उबटन तैय्यार हो गया...तब ललिताजु मुस्कुराते हुए बोली..अब ये उबटन श्रीजु को लगाओ...सुनकर,श्यामसुन्दर तो मानो स्तंभित हो गए...तब ललिताजु ने चेताया,जल्दी करो श्यामसुन्दर...श्यामसुन्दर ने हाथ मे उबटन लेकर...सबसे पहले श्रीजु के चरणो से शुरू किया...आह,उन कोमल कोमल चरणो को प्यारेजु भी डरते डरते ही छू रहे...अब चरणो से थोडा....इसके बाद श्रीजु की बाहो पर उपर से नीचे को लाते...फिर उनके कोमल कपोलो पर...पीठ पर कमर पर...तब चारो ओर एक अजीब सा मौन हो गया...मानो यहा सब जड हो....तब वृंदा सखी ने सबको चेताया...अब श्यामसुन्दर ने उबटन लगा लिया तो ललिता सखी ने कहा,अब तुम सब जमुनाजी मे से जल भरकर लाओ और श्रीजु को स्नान कराओ...और हा श्यामसुन्दर,तुम नायक थे टोली के तो तुम श्रीजु के श्री अंगो से उबटन छुडाओगे....तब प्यारी सखी जल डाल रही श्यामसुन्दर अपने कोमल करो से श्रीजु के अंगो से उबटन छुडाये रहे...नैनो से वर्षा कर रहे...मन ही मन स्वयं को धन्य मान रहे...जब स्नान हो गयो तब श्यामसुन्दर मुस्काते हुए ललिता से बोले...ललिते,कहो तो वस्त्र भी पहिरा दू...श्रीजु बोल पडी...धत्त.....सब हस दी..वो मौन टूट गया...जमुनाजी की लहरे उस मधुर हसी को पुनः पुनः दोहराने लगी.......
Monday, 2 May 2016
आँचल स्नान लीला
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment