Monday, 2 May 2016

आँचल कमल और श्रृंगार लीला

[5/2, 23:16] laddugopal shamli fb: राधे राधे......रा....धे....अरे सखी सुन तो,रूक जा....इस तेज ध्वनि से वह निरव वन गुंजित हो रहा था....श्रीजु...हँसती हुई,खिलखिलाती हुई दौडी जा रही...पीछे पीछे ललिता सखिजु पुकारती हुई दौड रही है....लाडलीजु को पकडने के लिए...अाज बडी ठिठोली हो रही सखियो मे,ललिता सखीजु के पीछे ओर मंजरिया,किंकरिया सब दौड रही....सहसा श्रीजु रूक गई....वो एकटक देखे जा रही है,तब तक सब सखिया भी आ गई....वे सब भी आश्चर्यचकित सी खडी की खडी रह गई,दरसल ये द्रश्य ही कुछ ऐसा था...यहा वन के इस ओर एक छोटे से पहाड पर से दूध सा सफेद जल गिर रहा...बीच मे काले,सफेद पत्थरो से गिरता सा जल,चारो ओर हरियाली,नीचे जल मे खिले सहस्त्रो गुलाबी कमल....आह,कैसे कहू...वो दृश्य सब सखिया,स्वयं श्रीजु बस देखती ही रह गईतभी लाडली जु बोली,सखियो चलो आज इस सुन्दर जल मे स्नान करते है....सबने अपने गहने उतार कर वही पत्थरो पर सजा दिए..और सब श्री जु के पीछे चल दी...धीरे धीरे सब नीचे उतरी...उस स्वच्छ जल मे सब स्नान करने लगी...उन कमलो के बीच,हंसिनीयो की तरह,हास परिहास करती...तभी श्रीजु ने एक अजीब उपक्रम किया,उन्होने सबकी नजर बचाकर एक कमल पुष्प तोड लिया और अपने आँचल मे छिपा लिया..परंतु आज सब कुछ विचित्र सा ही है...आज प्रत्येक सखी मानो श्री राधा हो गई हो...तब सबने इसी प्रकार एक एक कमल पुष्प तोडकर अपने अपने आँचल मे छिपा लिया...सब यही चेष्टा कर रही कि किसी को पता न चले इस पुष्प का....अब श्री जु ने चलने की तैय्यारी की...सब पीछे पीछे चल दी...उनके सोने से चमकते श्री अंगो से पानी की बूंदे टपक रही...मानो उनके भीतर से प्रेम रस की नदी ही बह रही हो...सब इसी अवस्था मे कुंज की ओर चल दी...जब सब वहा पहुची तो श्यामसुन्दर पहले से ही वहा आ पहुचे थे....आश्चर्य आज इस प्रकार भीगे हुए वस्त्रो मे होने पर भी वो,न लजाई,न सकुचाई...श्रीजु श्यामसुन्दर की ओर बढी और...नजरे झुकाते हुए वो कमल निकालकर उनकी ओर बढा दिया...
[5/2, 23:18] laddugopal shamli fb: पर श्यामसुन्दर ने उसे न लिया...उन्होने अपने बाएँ कर से श्रीजु की चिबुक पकडकर उपर उठाते हुए कहा...राधे...पहले उपर देखो,तब लूगा..श्रीजु ने उपर देखा तो श्यामसुन्दर ने उस कमल पुष्प के साथ उनके हाथ को भी पकड लिया..वो सिहर सी गई....तभी सब सखियो को अपने अपने कमल पुष्पो की याद आई सबने अपने पुष्पो को आँचल से बाहर निकाला...वे सब आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगी...जैसे ही उन्हे सब बात समझ आई...सब एक साथ हस पडी...तब श्रीजु का ध्यान भी उस ओर गया...सारी बात समझकर श्यामाश्याम भी मुस्कुरा दिये....परन्तु कान्हा ने सखियो और श्यामाजु के लिए कुछ ओर ही तैय्यारी कर रखी थी...एक नया खेल....उन्होने वृंदा सखीजु को इशारा किया,तब वृंदा सखीजु ने कहना प्रारंभ किया...सखियो,आज श्यामसुन्दर पाँच नीलकमल लाए थे...उन्होने वो पाँचो यही इसी कुंज मे छिपा दिए है...आप सबको नियत समय पर उन्है ढूंढना है...यदि तुम सब ढूंढ पायी तो आज श्री जु श्यामसुन्दर का जैसा चाहे श्रृंगार कर सकती है...परंतु यदि तुम न ढूंढ पायी तो श्यामसुन्दर आज अपने हाथो से श्रीजु को सजाऐगे...बोलो चुनौती मंजूर है तुम सब को..[4/24, 10:43 PM] Kanha pyari: तभी एक सखी बोली,किंतु समय का निर्णय कैसे होगा...वृंदा सखी बोली..अभी सूर्य आकाश के मध्य मे है,जैसे ही यह अस्ताचल की ओर बढना शुरू होगा,समय समाप्त हो जाऐगा....सभी ने चुनौती स्वीकार कर ली....अब तो कुंज मे चारो ओर खलबली सी मच गई...कोई सखी ईधर ढूंढे तो कोई सखी उधर...तभी एक मंजरी जोर से बोली..मिल गया,मिल गया प्यारी जु...सब उसी ओर दौडी...देखा तो वृक्ष की उपर की एक डाल पर रखा हुआ है एक नीलकमल....सब खुश हो गई...और दूसरा ढूंढने चली....[4/24, 10:53 PM] Kanha pyari: चित्रा सखी के साथ कुछ ओर सखिया भी ढूंढते हुए,कुंज मे लगे फव्वारे के पास पहुची...वहा जाकर  देखा आस पास तो नही मिला,तभी चित्रा सखी जु ने फव्वारे के बीच मे बने एक कमल पुष्प मे हाथ डालकर देखा तो दूसरा पुष्प भी उनको मिल गया सब खुश होती हुई श्री जु के पास चली...अब श्रीजु को दो नीलकमल तो मिल चुके थे,परंतु तीन अभी ढूंढने बाकी थे....और समय भी कम था...तब ललिता सखीजु कुछ किंकरियो को संग ले पुष्प वाटिका की ओर चली...वहाँ खुब ढूंढ मची...परंतु न मिला तब सब सखिया निराश हो लौटने लगी..जब वे उपवन के दरवाजे पर पहुंची तो क्या देखती है,दरवाजे के ऊपर एक पक्षी के घोसले मे नीलकमल रखा है...ललिता सखी ने झट से उसको उठा लिया....और ले जाकर श्रीजु को दे दिया...अब तक ये तीन ही पुष्प मिले श्रीजु को...बाकी दो ओर ढूंढने है...
[5/2, 23:18] laddugopal shamli fb: अब तक सखिया तीन ही कमल खोज पायी थी और सूर्य अस्ताचल की ओर बढ रहा था...अब सखिया भोजन कक्ष मे गई...काफी बडा होने के कारण अधिक सखिया लग गई ढूंढने मे ,ओर इस बार उन्है जल्दी ही एक हाथ धोने के पात्र के नीचे रखा हुआ चौथा नीलकमल मिल गया...सब बडी प्रसन्न हुई...उनकी चतुराई पर खूब हसी...अब केवल एक कमल बचा रहा और समय भी बस कुछ ही बच रहा था...सबने प्रत्येक स्थान तो देख ही लिया था,तो वह पुष्प आखिर कहा छिपाया लालजु ने...सब विचार कर रही थी की तभी,वृंदा सखी ने समय समाप्त होने की घोषणा की...आज लाडलीजु हार गई.....नियम के अनुसार जीतने वाला हारने वाले का मनचाही रीति से श्रृंगार करेगा....तो लालजु तिरछी चितवन से लाडलीजु की ओर देख मुस्कुराए....बोले..कहो प्यारी,चले....आज मेरा सौभाग्य हुआ की मै...तभी ललिता सखी बोली...पहले पाँचवा नीलकमल दिखाओ...लालजु मुस्काये,खडे हुए...और पीतांबर से कमल निकालकर श्रीजु की ओर बढा दिया...सखिया कुछ तनी सी होकर बोली...ये तो बेईमानी की तुमने...वो बोले..क्यू जी,क्या बेईमानी...अच्छा तुमने कमल पिताबंर मे क्यू छिपाया....तब वृंदासखी बोली...ललिता सखीजु आप सखियो ने ऐसी कोई शर्त तो नही रखी थी,अतः हार तो आप सब की ही हुई..तभी श्रीजु की स्वीकृती लालजु को मिल गई ओर,श्यामाजु चल दी...लालजु के हाथो से श्रृंगार धराने...लालजु ने लाडलीजु को वस्त्र दिये,वो पहनकर आयी....आह,वो गहरे हरे रंग का लहगा,गहरी हरी ही चोली और हल्की गुलाबी चुनरी...लहगे पर सबसे नीचे चौडी चाँदी के रंग की किनारी लगी थी,उससे उपर हल्के गुलाबी,बडे बडे कमल पुष्प बने थे,और उससे ऊपर थोडे छोटे कमल पुष्प...श्यामसुन्दर तो मानो पहली बार श्रीजु को देख रहे हो...देखते ही जा रहे,एकटक...जब श्री जु समीप आयी तब कुछ संभले....श्रीजु एक बडे से अंडाकार दर्पन के सामने बैठ गई...लालजु ने सबसे पहले श्रीजु को गले मे लगा हुआ एक हार पहनाया ,इसमे नीचे को ओर दो बडे बडे हरे रंग के रतन लगे है...इसके बाद इससे थोडा अधिक लंबा मोतियो का हार,जिसमे मोतियो की तीन लडी ,बीच मे हरी व दोनो ओर गुलाबा मोती...इसके बीच मे एक पंख फैलाऐ हुए मोर का टिकडा पडा है...ये पहनायी....लालजु की हालत अजीब सी है,वो कभी कुछ भूल रहे तो कभी कुछ,अब लाल जु ने मांग टीका सजाया...पर सिंदुर लगाना भूल गए...लाडलीजु मुस्कुरा ओर दी...बस,क्या कहै...जैसे तैसे संभले...अब लालजु ने श्रीजु के कानो मे मोर की आकृति के कुंडल धराये...जिनमे नीले हरे रंग के हीरे जडे थे...इसके बाद उन्होने लाडलीजु को नथ पहराई...जिस का लटकता हुआ हीरा श्रीजु के उपरी अधर को चूम रहा...इसके बाद श्री जु के चरणो को सजाने लगे...लालजु ने दोनो हाथो से वो चरण अपनी गोद मे रख लिए...वो पायल पहनाना चाह रहे थे...पर भूल गए...उन चरणो को पकडे ही बैठ गए....वो बार बार पायल उठावै फिर रख देवे,फिर उठावे फिर रख दे..जब लाडलीजु ने अधिक समय होता देखा तो उन्होने कोई वस्तु नीचे गिरा दी....लालजु,मानो स्वपन से जागे हो...वो जल्दी जल्दी पायल पहनाने लगे...फिर मेहंदी,चंदन से उन्होने श्रीजु के चरणो पर मोर,व अंगुलियो पर मोर पंख बनाये.....इसके बाद उन्होने सिंदुर की बडी सी बिंदिया लाडलीजु के माथे पर सजाई...इधर तो ये सब हो रहा,ओर वहा इस कुंज के चारो ओर सब सखिया दरवाजो,खिडकियो के छिद्रो मे से झाक झाक कर देख रही...बहुत भीड लगी है...यहा तक कोई कोई तो उपरी खिडकियो पर से भी...ये भी...अब लालजु को सबसे कठिन कार्य करना था.श्रीजु के नैनो मे काजल डालना...हाय,उन्होने अंगुली पर काजल लिया पर जैसे श्रीजु की ओर देखा,कांप गए...वो नजर से नजर मिलते ही,हाय...वो तो मूर्छित ही होने लगे...तब श्रीजु ने उनको पकडकर ह्रदय से लगा लिया,वो उनके कान के पास धीरे से मधुर स्वर मे बोली...श्यामसुन्दर,श्यामसुन्दर....वो चेतन ना हुए...तब श्रीजु बोली चलो रहने दो मै किसी सखी को बुलाती हू...सुनते ही श्यामसुन्दर खडे हो गए...न न लाडलीजु,मै कर तो रहा हू....लालजु ऐसा करते है काजल किसी ओर सखी से डलवा लेते है...लालजु ने स्वीकृती दे दी...तब श्रीजु ने एक सखी का नाम लेकर पुकारा....बाहर वो सखी ये सब देखकर सुध बुध खोये बैठी थी...वो सुन ही न पाई...तब किसी सखी ने चेताया उसको...ऐ सखी,देख न लाडलीजु कितनी बार पुकार चुकी...मुझे,मुझे क्या सखी...हा री तुझे,चल जा जल्दी...वो दौडी...जी लाडलीजु...सखी मेरे नैनो मे जरा काजल तो लगा दे... हाय...वो तो सुनकर ही सहम गयी,आह कैसे करूगी...पर फिर धीरद धर,काजल अंगुली पर ले लगाने लगी...नजर मिलते ही आँसू आ गए इसे तो...उसने छिपाने के लिए जरा नजर हटाई,तब लाडलीजु बोली..तू भी रहने दे बस,ला मै खुद....नही नही लाडली जु,वो तो मेरी आँख मे तिनका चला गया था...और जैसे तैसे उसने काजल लगा ही दिया...वो चली गई...अब श्यामसुन्दर ने श्री जु का आँचल सर पर रखा ओर चंद्रिका धराई...श्रीजु को गुलाबी कमलो की घुटनो तक की एक माला धारण कराई....तब श्रीजु के याद दिलाने पर हरी,गुलाबी और सुनहरी चूडिया पहनाई...अब सब सखिया दरवाजा खोलकर भीतर आ गई...पहले तो सब की सब देखती ही रही...सच,श्यामसुन्दर ने विचित्र ही श्रृंगार किया लाडलीजु का..सबने मन ही मन खूब प्रशंसा की....तभी रंग सखी ने ललिता सखी को कुछ इशारा किया,और ललिता सखीजु बोली श्यामसुन्दर तुम बडे बौराये हो...तुम हमारी लाडलीजु को नजर लगाना चाहते हो क्या....काला टीका भी न लगाया...और श्यामसुन्दर ने लाडलीजु की चिबुक पर एक काला टीका लगा दिया...साथ ही साथ,नैनो से ही श्रीजु से एक बार अधरामृत पान कराने की विनती करने लगे....लाडलीजु ने लजाते हुए,उनके अधरो पर कर रख रोक दिया....पर वो तो वो.......

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