स्वागत की तैयारी करो
हृदय-मन्दिर में मनमोहन को बुलाना चाहतो हो तो पहले काम, तृष्णा, लोभ, क्रोध, वैर, हिंसा, अभिमान, अहंकार, मद्, ममता, आसक्ति, विषाद और मोह के दुर्गन्ध भरे कूड़े को कोने-कोने से झाड़-बुहारकर बाहर दूर फेंक दो और संयम, संतोष, दया, क्षमा, मैत्री, अहिंसा, नम्रता, त्याग, वैराग्य, प्रसन्नता, समता, विवेक, भक्ति और प्रेम आदि सुन्दर-सुन्दर फूलों को चुन-चुनकर उनसे मन्दिर को भीतर-बाहर खूब सजा लो! जब सजावट में कुछ भी करसर न रह जाय, तब उस प्यारे को जोर से पुकारो, तुरंत उत्तर मिलेगा और उसकी मोहिनी रूप-छटा से तुम्हारा, तुम्हारा हृदय-मन्दिर उसी क्षण जगमगा उठेगा।
सरकारी नौकर अपने अफसर के, सेवक मालिक के, प्रजा राजा के, जनता नेता के, शिष्य आचार्य के, बन्धु अपने माननीय बन्धु के और पत्नी अपने प्राणाधार पति के स्वागत के लिये अपने-अपने भावों के अनुसार कैसी-कैसी तैयारियाँ करते हैं। फिर जो यम, वायु, अग्नि आदि लोकपालों के भी शासक, ब्रह्मा आदि स्वामियों के भी स्वामी, नारद, सनत्कुमार आदि नेताओं के भी नेता, देवराज इन्द्र आदि सम्राटों के भी सम्राट, व्यास-वाल्मीकि आदि आचार्यों के भी आचार्य, बन्धुओं में भी परम बान्धव और पतियों के भी परम पति हैं- जिन एक ही सब गुणों के अथाह सागर की ये सब बूँदें हैं, उन सर्वगुणाधार के स्वागत के लिये भी तो कुछ तैयारी करनी चाहिये। तुम्हारी तैयारी का तभी पता चलेगा, जब तुम्हारे मन में और कुछ भी न रहकर केवल उसक मोहन मुखड़ा देखने और कोमल चरण-स्पर्श करने की ही अनन्य और तीव्र लालसा रह जायगी। भाई जी ।
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