🌿🌸 गये हम,इन नैनन ते हार 🌸 🌿
गये हम, इन नैनन ते हार।
प्रथम न माने, अति मनमाने, अरुझाने दृग चार।
गये हार जब रोदन ठाने, मो गर फाँसी डार।
जो कछु कर् यो,भर् यो सो अबहूँ,सोचत नाहिं गमार।
लंपट भ्रमर सरस–रस–लोभी, विहरत कुसुम अपार।
इमि जिय जानि ध्यान तजि उनको,सोइय पाँव पसार।
किमि ‘कृपालु’ सोइय जिन नैनन,करकत नंदकुमार।
भावार्थ : –
एक विरहिणी कहती है कि -
प्यारे श्यामसुन्दर के हेतु दीवाने इन नेत्रों से मैं तो हार गयी |
पहले तो यह मनमाने बन कर मेरी बात न मानते हुए प्रियतम की आँखों में जाकर उलझ गये और अब जब हार गये तो मेरे गले में फाँसी डालकर स्वयं आँसू बहा रहे हैं |
इन नेत्रों ने जो कुछ भी मनमाना किया उस का फल भली – भाँति पा लिया। किन्तु यह इतने हठीले और मूर्ख हैं कि अब भी किंचित् भी विचार नहीं करते |
जिस प्रकार मधुर रस का लोलुप भौंरा लम्पट की भाँति अनन्तानन्त पुष्पों का चक्कर लगाया करता है उसी प्रकार श्यामसुन्दर भी हैं |
ऐसा समझ कर नेत्रों ! अब भी उनका ध्यान छोड़ दो एवं चैन से सोओ |
‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि जिन नेत्रों में निरन्तर नन्दकुमार करकते रहते हैं (करकने से अभिप्राय चुभने का है) वे नेत्र भला किस प्रकार चैन से सो सकते हैं |
( प्रेम रस मदिरा: विरह – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
का पद प्रसाद।
🙏🙏👏🏽👏🏽
Saturday, 7 May 2016
गए हम इन नैनन ते हार
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