Monday, 2 May 2016

आँचल निभृत लीला दर्शन

जय जय प्रियाप्रियतम..
रात्री का समय....संभवतः कृष्णपक्ष की रात्री...निकुंज के इस कक्ष मे टिमटिमाते मद्धम सी रोशनी के सैकडो दीप जले है...कक्ष के दाई व बाई ओर दो बडे बडे झरोखे,जिन पर लगे झीने झीने पर्दे पवन द्वारा हल्के हल्के हिल रहे...तभी द्वार से युगल..युगल प्रवेश करते है,श्रीजु की बायी बाह उनके गले मे व दायी बाह से रसराज का पिताबंर पकड रखा है...ओर प्रियतम की बायी बाह श्रीजु की कटि पर व दायी बाह कंठ मे..दोनो एक दूसरे पर झूके से...आभूषण भी बहुत कम धारण कर रखे...इसी प्रकार एक दूसरे से लिपटे युगल शैय्या तक आए...प्रियतम ने प्रियाजु को दोनो हाथो से पकड प्रेम से बैठाया...तभी यकायक बाये झरोखे से पवन का एक झोका आया ओर प्रियाजु के सर से अंचल सरक कर नीचे...वो संभालने को तत्पर हुई पर प्रियतम ने प्रेम विवश हो दोनो कर अपने कर मे ले लिए....वो सिमट कर प्रियतम के ह्रदय से लग गई।
प्रियतम ने उनको अंक मे भर लिया दोनो भुजाओ से....वो कुछ सम्हलकर हटी,प्रियतम की ओर देखा...दोनो के नयन प्रेमरस से बोझिल हो अधखुले से...अब तो रसशिरोमणि ने प्रेम से उनका मस्तक चूम लिया,फिर बाया कपोल...अौर अब...अब...अधर पर आए...अणु भर दूरी पर वो ठहर गए,दोनो की श्वास परस्पर एक होने लगी....यू रूका देख प्रियाजु ने किंचित नेत्र खोले...पुनः नैन मिले और अधर....
जाने कब तक ये अधर सुधा पान करते रहे....फिर कंठ,वक्षस्थल पर चुंबन....श्रमित सा होने पर प्रियतम ने प्रिया के ह्रदय पर सर रख दिया...कुछ देर बाद प्रिया की ओर देखा,उनके मुख पर ओस बूंदो से श्रमकण देख पुनः पुनः....अधर रख दिये...तभी पवन के एक झोके से कुछ दीप बुझ गए...प्रियाप्रितम दोनो ने बाये झरोखे की ओर देखा,वहा एक सारी बैठी थी...दोनो ही मुस्कुरा दिये .......

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