एक सखी वृक्ष के नीचे बने चबुतरे पर नैन मूंदे कुछ आनंद मे पेड से पीठ लगा बैठी है...दूसरी सखी आई,उसे चेताया..इस दशा का कारण पूछा....वो बोली..
सखी कुछ समय पूर्व राधे इस वृक्ष के पीछे की ओर बैठी थी,उन्होने दोनो चरण नीचे कर रखे थे पर वे भूमी को नही छू रहे थे...
नीचे उनके चरणो के दोनो ओर एक एक सखी बैठी थी।
राधे हाथ फैलाए बैठी थी,मेहंदी लगवा रही।
तभी पवन के एक झोके से उनके श्याम केशो की एक लट उनकी नासिका को चूमती हुई,अधरो पर आ गई।वो अपनी ग्रीवा को कुछ हिलाकर उसे पीछे करने लगी,सखिया उनकी हथेली की ओर ही देखते हुए बोली...राधे ठीक से बैठो न....
ऐ सखी तभी मै यहाँ आयी,मैने यू देख उस लट को पीछे कर दिया. ..वो मेरी ओर देख मुस्कुराकर पास बैठने का इशारा कर बोली...बैठ न।
मै बैठने को हुई ही थी की तभी श्यामसुन्दर वहाँ आये,मै खडी रही।
वो मेहंदी लगा रही सखियो की ओर देख बोले....सखी,मेहंदी मे मेरा नाम लिखना.....
सखिया बोली अच्छा..पर तुम्हारा कौन सा नाम लिखे श्यामसुन्दर,केशव,कमलनयन,रसराज....कौन सा।
वो कुछ मुस्कुराए राधे की ओर देख बोले...वही जो प्यारी राधे को पसंद हो,जो अत्यधिक प्रेम मे वो मुझे कहती है....
सखियाँ राधे से बोली....बोलो न राधे,क्या लिखे,राधे मौन रह,मुस्कुरा दी।
तब श्यामसुन्दर ही बोले सखी "कान्हा" लिख दे।सखिया हस दी।तभी एक सखी शर्बत का एक ग्लास ले आयी,श्यामसुन्दर ने ले लिया।
तब मै इस वृक्ष के पीछे कुछ उठाने को आयी।
सखी,इतने ही मे वो सखिया बोली..राधे,पवन के कारण मेहंदी जरा सूख सी गइ है,हम इसे ठीक कर लाते है,यू कहकर वो दोनो परस्पर एक दूसरे को देख हसती हुई चली गयी।
अब तो श्यामसुन्दर को अति सुन्दर अवसर प्राप्त हो गया,वो राधे के पास बैठते हुए शरबत का ग्लास राधे की ओर बढाते हुए बोले...
राधे तुम्हारा गला सूख गया होगा न थोडा शरबत पी लो....कहकर वो राधे के ओर समीप आने लगे,राधे कुछ ओर सकुचाकर सिमट गयी।
श्यामसुन्दर ने ग्लास को एक ओर रख दिया व अपना दायाँ चरण राधे के चरण पर धर दिया ।
वो दायी ओर बैठे,अपने बाये कर को कटि के पीछे से ले जाकर बायी ओर की कटि को पकड लिया......कुछ ओर पास हो अपने दाये कर से उनके केशो को सहलाते हुए बोले राधे मेरी ओर देखो न,,अपनी प्रेमपूर्ण दृष्टि से मेरी ओर तनिक दृष्टिपात करो न....
अपने इन नैनो से कहो न की मेरे इन भिक्षुक नयनो की ओर कुछ प्रेमकटाक्ष करे...
ये अति अति अधीर हो रहे है....
राधे के हाथो मे मेहंदी लगी तो वो रोक न पा रही,उनकी प्रेम चेष्टाए बढती ही जा रही।
राधे ओर गडी सी हुई जा रही....प्रेम व लज्जा की अधिकता से वो नयन न उठा पा रही....
सखी बोली,पर तब तू कहाँ थी....
अरी सखी,मै यहा इस वृक्ष के पीछे ही खडी थी,मैने सोची की यदि गयी तो मेरी पायल के नुपुर से प्रियाप्रीयतम के प्रेम मे कही विघ्न न हो,ओर मै जडवत सी ही हो गयी थी,उन प्रेम चेष्टाओ को देखती रही,मेरे प्रियाप्रियतम से मुख भी तो न मोड सकती थी।
सखी बोली,आहा..... फिर
सखी श्यामसुन्दर अनुनय,विनय करते रहे...पर राधे ने नयन न उठाये....
तब श्यामसुन्दर बोले,क्या प्यासा ही रखोगी राधे...राधे ये नयन व्याकुल हो रहे है तुम्हारी एक प्रेम दृष्टि के लिए....कहते कहते उनके नैन भर आये....
और एक अश्रुबिन्दु नैनो से निकल पडा....
ये देख राधे ने अतिव्याकुल सी हो उनके नैनो की ओर देखा.....उन्होने दोनो भुजाओ से कस श्यामसुन्दर के नैनो पर बारी बारी से अपने अधर रख दिये......
ये देख श्यामसुन्दर बोल पडे...आह राधे....तुमने मेरे इस अश्रु को अनमोल कर दिया....
मुझे न पता था की मेरा एक अश्रु इन नैनो को तुम्हारे अधर रस का पान करा देगा,तो मै सदा इन नैनो को बहाता रहता.....
राधे ने उनकी ओर देखते हुए कहा,यू न कहो श्यामसुन्दर मै तो तुम्हारी दासी ही....
श्यामसुन्दर बोले न मै तुम्हारा दास राधे....कहकर राधे को ह्रदय से लिपटा लिया....दोनो के नैन बंद हो चले,आलिंगन ओर ओर प्रगाढ होने लग रहा....
सखी,मै ये देख खडी न रह सकी....मानो वो सब स्पर्श मुझे भी हो रहा,मेरे भी नयन मूंद गये.......जाने फिर क्या हुआ हो....
दूसरी सखी भी नयन मूंद उसी आनंद मे खो गयी....
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