Sunday, 8 May 2016

युगलतत्व की एकता

युगलतत्व की एकता

जैसे अग्नि और अग्नि की दाहिका-शक्ति, सूर्य और सूर्य की किरणें, चन्द्रमा और चन्द्रमा की चाँदनी एवं जल और जल की शीतलता सदा एक हैं, इनमें कभी काई भेद नहीं है, उसी प्रकार शक्तिमान् और शक्ति में कोई भेद नहीं है। जैसे अग्निशक्ति-अग्नि-स्वरूप के आश्रय के बिना नहीं रहती और जैसे अग्निस्वरूप अग्निशक्ति के बिना सिद्ध ही नहीं होता, उसी प्रकार शक्ति और शक्तिमान् का एकत्व-सम्बन्ध है। वह नित्य पुरुषरूप है और नित्य ही नारी-स्वरूप। ऐसे दो होते हुए ही वे नित्य एक हैं। स्वरूपतः कभी दो होकर रह ही नहीं सकते। एक के बिना एक का अस्तित्व ही नहीं रहता।
पराशक्ति परब्रह्म शक्तिमान के आश्रय बिना नहीं रहती; इसलिये वह शक्तिमान् ‘परमात्मस्वरूपा’ ही हैं। इसी प्रकार शक्तिमान् परब्रह्म पराशक्ति के कारण ही शक्तिमान् हैं, इसलिये वे नित्य ‘पराशक्तिरूपा’ ही हैं। इन दोनों में भेद मानना ही भ्रम है। परंतु इस प्रकार नित्य अभिन्न होनेपर पर इनमें प्रधानता शक्ति की ही है।
‘सच्चिनानन्दघन’ सर्वातीत तत्व भी ‘सच्चिनानन्द-शक्ति’ का आभाव हो तो ‘शून्य’ रह जाता है। इसलिये उसका सत्-तत्व सत्-शक्ति से, चित्-तत्व चित्-शक्ति से और आनन्द तत्व आल्हादिनी-शक्ति से ही स्वरूपतः सिद्ध है।
परमात्मा इन्हीं शक्तियों को संधिनी, संवित् और लाह्दिनी-शक्ति भी बतलाया गया है। अपनी जिस स्वरूपाशक्ति के द्वारा भगवान सबको सत्ता देते हैं, उस शक्ति का नाम ‘संधिनी’ है; जिसे द्वारा ज्ञान या प्रकाश दिया जाता है, वह ‘संवित्’ शक्ति है और स्वय नित्य अनाद्यनन्त परमानन्दस्वरूप होकर भी जिस शक्ति के द्वारा अपने आनन्दस्वरूप की जीवों को अनुभूति कराते हैं तथा स्वयं भी आत्मस्वरूप विलक्षण परमानन्द का साक्षात्कार करते हैं, उस आनन्दमयी स्वरूपशक्ति का नाम लाह्दिनीशक्ति है यह परमाश्रयमय नित्य परमानन्द स्वरूप लाह्दिनी शक्ति ही स्नेह, प्रणय, मान, राग, अनुराग, भाव और महाभावरूप में भक्ति या प्रेम-शब्द-वाच्य होकर परम प्रेमसुधा का प्रवाह बहाती है और उसमें अवगाहन करके भक्त तथा भगवान दोनों ही परमानन्द का अतृप्त पान करते हैं। यह सब शक्ति का ही चमत्कार है।

भगवान विष्णु, भगवान शंकर, भगवान राम, भगवान श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य बड़े-छोटे किसी की भी उपासना शक्तिरहित रूप में हो ही नहीं सकती। जो शक्ति विष्णु को विष्णु, जो शक्ति शिव को शिव, जो शक्ति, राम को राम और जो शक्ति श्रीकृष्ण को श्रीकृष्ण बनाये हुए हैं, जिनके बिना उनकी स्वरूप-सत्ता ही नहीं रहती, उन शक्तियों के बिना जब वे शक्तिमान् रूप ही नहीं रहते, तब उनकी अकेले की-‘शक्तिरहित शक्तिमान्’ की उपासना कैसे हो सकती है। शक्ति न रहने पर तो उनका स्वरूप ही नहीं रहेगा।

शक्ति को साथ माना जाय या न माना जाय, उपासना में शक्ति का विग्रह साथ रखा जाय या न रखा जाय, जब उपासना होगी तब शक्ति के साथ रहेगी ही। उसके बिना उपास्य तथा उसकी उपासना सम्भव ही नहीं।
इसी प्रकार अकेली पराशक्ति की भी उपासना नहीं हो सकती। जब शक्ति शक्तिमान में ही निवास करती है, तब शक्ति की उपासना से शक्तिमान की उपासना भी स्वतः ही हो जायगी। पुरुषरूप शक्तिमान की उपासना करनेवाले स्वाभाविक ही शक्ति की उपासना करते हैं, चाहे अपनी जान में न करें। और इसी प्रकार शक्ति की उपासना करनेवाले भी शक्त्याधार शक्तिमान की उपासना करते हैं। अतएव मुख्य या गौण भेद से किसी भी शक्तिमान या शक्ति की उपासना की जाय, यदि उसमें अनन्यभाव है तो एकमात्र सच्चिदानन्द-तत्व की उपासना है।
तथापि पृथक्-पृथक् रूपों में तथा विभिन्न नामों से शक्ति की उपासना की जाती है। वैष्णवजन भगवती लक्ष्मी की, भगवती सीता की, भगवती राधा की उपासना करते ही हैं। शैव भगवती उमा-सती की-दुर्गा की उपासना करते हैं और इसी प्रकार शाक्त भी भगवान शिव तथा भैरव की उपासना करते हैं। विशेष-विशेष अवसरों पर भगवान स्वयं उपदेश दकेकर भगवती देवी की उपासना अपने भक्तों से करवाते हैं और भगवती स्वयं उपदेश देकर भगवान की उपासना करवाती हैं तथा इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता प्राप्त होती है। भगवान राम की उपासना से सीता को, भगवान श्रीकृष्ण की उपासना से राधा को, भगवान श्रीविष्णु की उपासना से लक्ष्मी को और भगवान श्रीसदाशिव की उपासना से पार्वती को एवं इसी प्रकार भगवती सीता की उपासना से श्रीराम को, भगवती राधा की उपासना से श्रीकृष्ण को, भगवती लक्ष्मी की उपासना से श्रीविष्णु को और पार्वती की उपासना से श्रीमहादेव को अनिर्वचनीय सुख की प्राप्ति होती है।
उपासना में इष्ट का रूप एक होना चाहिये। यह परम आवश्यक है। तथापि उस की की प्रसन्नता-सम्पादन के लिये, या उसके आज्ञापालन के लिये अन्य रूप की उपासना करना भी कर्तव्य होता है। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान शिव की तथा ‘एकानंशा’ शक्ति की उपासना की। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान शंकर की उपासना, भगवान श्री राम ने स्वयं शक्ति तथा शिव की उपासना की, श्रीशंकर ने भगवान विष्णु तथा राम की शक्ति की आराधना की, गोपों ने अम्बिका की पूजा की, गोपरमणियों ने कात्यायनी की पूजा की; यादवों ने दुर्गापूजन किया एवं श्रीसीताजी और श्रीरुक्मिणी जी ने अम्बिका पूजन किया। ये सब कथाएँ प्रसिद्ध हैं।
शक्ति और शक्तिमान में अभेद मानते हुए ही जिनकी जिस रूप में, जिस नाम में, जिस तत्व-विशेष में रुचि हो, जिसका जो इष्ट हो, उसको उसी की उपासना उसी के अनुकूल पद्धति से करनी चाहिये। पर यह मानना चाहिये कि हमारे ही परम इष्ट की उपासना सभी लोग विभिन्न नाम-रूपों से करते हैं तथा हमारे ही परम इष्टदेव विभिन्न नाना रूपों को धारण किये हुए हैं।

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