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🙏🏼श्रीमद् सद्गुरु सरकार की जय🙏🏼
✨प्रेम रस सिद्धान्त (भाग 12)✨
🌷"श्री राधे"🌷
🌿अध्याय १ - जीव का चरम लक्ष्य🌿
अब आप एक और विलक्षण सिद्धान्त सुन लीजिये जिसे सुनकर आप हँसेंगे । उन महाशय का नाम डार्विन है । उन्होंने कहा-अमीबा कीड़े से विकास होते-होते रेंगने वाले, फिसलने वाले, फिर मछली, फिर पक्षी, पशु, बंदर, वनमानुष और फिर मनुष्य बने अर्थात् मनुष्यों के पूर्वज बन्दर हैं । उनका कहना है कि अमीबा कीड़ा स्वयं दुगुना हो गया तो हाइड्रा बन गया । इसी प्रकार विकास होते-होते मनुष्य बन गया । लन्दन के म्यूज़ियम में इस विकास क्रम को दिखाने के लिए विभिन्न अस्थि-पंजर रखे हुए हैं ।
अब थोड़ा विचार कीजिए । बीज से अंकुर एवं फूल बनने का विकास-युक्त क्रमिक नियम पहले भी था तो आज भी है । फिर मछली से मछली एवं हाथी से हाथी बनने का नियम आज क्यों नहीं है ? फिर तो आज भी तो कबूतर से हाथी पैदा होना चहिये। यह क्रमिक नियम कहाँ नष्ट हो गया ? आज तो कबूतर से कबूतर ही पैदा होते हैं । मनुष्य से मनुष्य ही पैदा होते हैं ।
पुनश्च, विकासवादियों से कोई पूछे कि यह बताओ कि हड्डी रहित अमीबा आदि जीवों से हड्डी युक्त पशु-पक्षी आदि कैसे बन गए तो वे उत्तर देते हैं कि मानसिक प्रेरणा से ही हड्डी बन गयी । अब ज़रा सोचिये कि हड्डी से मन का तो कोई सम्बन्ध नहीं है, दाँत भी हड्डी ही तो है, उसमें सुई चुभाओ, कोई कष्ट नहीं होता ।
पुन: वे दूसरा उत्तर देते हैं कि कठोर काम करने से हड्डी बन गयी । अब ज़रा सोचिये कि कठोर काम करने से बहिरंग घट्टे पड़ सकते हैं, बाहरी काठिन्य हो सकता है, हड्डी कैसे बनेगी? क्या लोहार के हाथ में हड्डी अधिक बन जाती है ?
पुन: वे तीसरा उत्तर देते हैं कि नस-नाड़ी इकट्ठी होकर हड्डी बन गयी । किन्तु यह तो और भी हँसी की बात है । क्योंकि यदि नस-नाड़ी इकट्ठी होकर दाँत बन जाती है तो फिर दूध के दाँत गिर जाने पर पुन: दाँत कैसे आते हैं? यदि वे कहें कि नस-नाड़ी तो असंख्य हैं पुन: दाँत बन जाती है, तब यह प्रश्न आता है कि पुन: दूसरी बार दाँत गिरने पर बुढ़ापे तक दाँत क्यों नहीं आते ? क्या बूढ़े की नस-नाड़ी समाप्त हो जाती है ?
अब उनका अंतिम उत्तर सुनिए । वे कहते हैं परिस्थितिवश हड्डी बन गयि। परिस्थिति का उत्तर तो घोर पागलपन का है । क्योंकि देखिये एक ही परिस्थिति में भाई-बहिन पैदा हुए किन्तु बहिन की दाढ़ी मूंछ नहीं होती । हाथी एवं हथिनी एक परिस्थिति में हुए लेकिन हथिनी के बड़े दाँत नहीं होते । मोर एवं मयूर एक ही परिस्थिति में हुए किन्तु मयूरी की लम्बी पूँछ नहीं होती । मुर्गा-मुर्गी एक ही परिस्थिति में हुए किन्तु मुर्गी के सर पर कलंगी नहीं होती । इतना ही नहीं, विकासवाद के अनुसार क्रमिक विकास में प्राणियों के दाँतो में कोई भी मेल जोल नहीं है । देखिये गाय भैंस के ऊपरी दाँत नहीं होते किन्तु घोड़े के नीचे ऊपर दोनों दाँत होते हैं । पुन: कुत्ते को देखिये, उसके दूध के दाँत नहीं गिरते और देखिये घोड़े के स्तन नहीं होते, बैल के स्तन अण्डकोष के पास होते हैं । बच्चा पैदा होते समय घोड़ी की जीभ बहार गिर जाती है ।
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