Monday, 4 July 2016

मैं पिय के गुनगन गाऊँ री

मैं पिय के गुनगन गाऊँ री
मैं पिय के गुनगन गाऊँ।
मेरे पिया मेरे हिये बसत हैं, मैं सुमिरि-सुमिरि सचुपाऊँ री।
मेरे पिया को सकल पसारो मैं देख दंग रह जाऊँ री।
मेरे पिया अग-जग के नायक, मैं उनके बल गरबाऊँ री।
मेरे पिया दीनन के पालक, मैं निज में दैन्य जगाऊँ री।
मेरे पिया करुना के सागर, मैं निर्भय गुनगन गाऊँ री।
मेरे पिया हैं सब के स्वामी, मैं सबसे नेह निभाऊँ री।
मेरे पिया हैं रसिक सिरोमनि, मैं उनकों नाचि रिझाऊँ री।
मेरे पिया हैं खेल-खिलारी, मैं निजको गेंद बनाऊँ री।
मेरे पिया हैं अग-जग प्रेरक, मैं उनको जन्त्र कहाऊँ री।
मेरे पिया हैं प्रीति-भिखारी, मैं अनुदिन प्रीति बढ़ाऊँ री।
मेरे पिया ही को है सब कुछ, मैं अपनो कछू न पाऊँ री।
मेरे पिया हैं दुरगुन-द्वेषी, मैं दुरगुन सों घबराऊँ री।
मेरे पिया सन्तन के प्रेमी, मैं सन्त-सरन में जाऊँ री।
मेरे पिया ही तो हैं सब कुछ, मैं निजको अलग न पाऊँ री।
मेरे पिया बिनु कहूँ न कुछ भी, मैं आप न कुछ रह जाऊँ री।

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