Wednesday, 6 July 2016

श्रीराधा-कृष्ण की अष्टकालीन स्मरणीय सेवा भाग 2

श्रीराधा-कृष्ण की अष्टकालीन स्मरणीय सेवा भाग 2

पूर्वाहंकालीन सेवा

1.बाल-भोग(कलेऊ) आरोगकर श्रीकृष्ण के गोचारण के लिये वन जाते समय श्रीराधाजी सखियों के साथ कुछ दूर श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे जाकर जब यावट को लौंटें, उस समय ताम्बूल और जल-पात्र आदि लेकर पीछे-पीछे गमन करना।

2.श्रीराधा-गोविन्द के पारस्परिक संदेश उनके पास पहुँचाकर उनको संतुष्ट करना ।

3.सूर्य-पूजा के बहाने (अथवा कभी-कभी वन-शोभा-दर्शन के बहाने) श्रीराधाकुण्ड पर श्रीकृष्ण से मिलन कराने के हेतु श्रीमती को अभिसार कराना और उस समय ताम्बूल और जल-पात्र आदि लेकर उनके पीछे-पीछे गमन करना।

]मध्याह्नकालीन सेवा

श्रीकुण्ड अर्थात राधा कुण्ड पर श्रीराधा और श्रीकृष्ण के मिलन का दर्शन करना।

कुंज में विचित्र पुष्प-मन्दिर आदि का निर्माण करना और कुंज को साफ करना।

पुष्पशय्या की रचना करना।

श्रीयुगल के श्रीचरणों को धोना।

अपने केशों के द्वारा उनके श्रीचरणों का जल पोंछना।

चँवर डुलाना।

मधुक (महुए) के पुष्पों से पेय मधु बनाना।

मधुपूर्ण पात्र श्रीराधा-कृष्ण के सम्मुख धारण करना।

इलायची, लौंग, कपूर आदि के द्वारा सुवासित ताम्बूल अर्पण करना।

श्रीयुगल-चर्वित कृपाप्राप्त ताम्बूल का आस्वादन करना।

श्रीराधा-कृष्ण-युगल की विहाराभिलाषा का अनुभव करके कुंज से बाहर चले आना।

कस्तूरी-कुंकुम आदि के अनुलेपन द्वारा सुवासित श्री अंग के सौरभ को ग्रहण करना।

नूपुर और कंगन आदि की मधुर ध्वनि का श्रवण करना।

श्रीयुगल के श्रीचरण-कमलों में ध्वजा, वज्र, अंकुश आदि चिन्हों के दर्शन करना।

श्रीयुगल के विहर के पश्चात् कुंज के भीतर पुनः प्रवेश करना।

श्रीयुगल के पैर सहलाना और हवा करना।

17.सुगन्धित पुष्प आदि से वासित शीतल जल प्रदान करना।

18.श्रीराधा-रानी के श्री अंगों के लुप्त चित्रों का पुनः निर्माण करना और तिलक-रचना करना।

19.श्रीमती के श्रीअंगों में चतुस्सम के गन्ध का अनुलेपन करना।

20.टूटे हुए मोतियों के हार को गूँथना।

21.पुष्प-चयन करना।

22.वैजयन्ती माला तथा हार एंव गजरे आदि गूँथना।

23.हास-परिहास-रत श्रीयुगल के श्रीहस्त कमलों में मोतियों का हार तथा पुष्पों की माला आदि प्रदान करना।

24.हार-माला आदि पहनाना।

25.श्रीमती की वेणी बाँधना।

26.उनके नयनों में काजल लगाना।

27.उनके अधरों को सुरजिंत करना।

28.चिबुक पर कस्तूरी के द्वारा बिन्दु बनाना।

29.मधुर फलों का संग्रह करना।

30.फलों को बनाकर भोग लगाने के लिये प्रदान करना।

31.मधुर फलों का संग्रह करना।

32.फलों को बनाकर भोग लगाने के लिये प्रदान करना।

क्रमशः ...

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