भगवती कात्यायनी द्वारा चीर-हरण भाग 4
'वह कितनी देर से उठी है?' सहज पूछ लिया।
'वह क्या अकेली उठी है। सब लड़कियाँ कब-की उठ गयीं।' श्रीदाम हँसता-हँसता बता रहा है- 'लड़कियों को शीत नहीं लगता क्या? सब यमुना-स्नान करके अब तो वहाँ पूजा भी प्रारम्भ कर चुकी होंगी।'
'इसीलिये सब आजकल वन में दही लेकर नहीं आती हैं!' श्यामसुन्दर ने सखा के स्कन्ध पर सस्नेह कर रखकर कहा- 'चल, देखें तो सही कि ये सब कैसी पूजा करती हैं।'
'वे घाट पर नहीं जाती।' श्रीदामा ने बतलाया- 'मुझे पता है कहाँ जाती हैं। चल तुझे ले चलता हूँ; किंतु उनकी पूजा में कोई बाधा मत देना।'
'पूजा में बाधा क्यों देंगे।' सखा को आश्वासन दे दिया- 'चुपचाप दूर से देखेंगे कि इनकी पूजा कैसी है। कोई भूल करती होंगी तो बतला देंगे।'
श्रीदाम उत्साह में कुछ अधिक अनुमान कर गया था। दूर से स्पष्ट हो गया था कि लड़कियाँ अभी स्नान ही कर रही हैं। श्रीव्रजराजकुमार ने सखा की ओर देखकर कहा- 'देख, सब नंगी स्नान कर रही हैं। है न यह बुरी बात?'
'मैं डाँटता हूँ इनको।' श्रीदाम आगे जाना चाहता था।
'तू अपनी बहिन को डाँट नहीं सकेगा। चुपचाप सब यहीं रुको।' तत्काल मन में योजना बना ली- 'मैं इन सबको छकाता हूँ।'
कुछ नीचे झुककर दबे पैर वृक्षों की आड़ लेकर बढ़े नीलसुन्दर। सब बालक कुतूहलपूर्वक देखते रहे। मैं निश्चिन्त हो गयी। अब ये स्वयं उपस्थित हो गये तो मेरी पूजा सार्थक हो गयी। पुलिन के समीप पहुँचकर वृक्ष की ओट से निकलकर दौड़े और तट पर पड़े वस्त्र एक साथ समेटकर कन्धों पर लादकर भागे। भागकर समीप के ही कदम्ब पर चढ़ गये। वस्त्रों को उतारकर कन्धे से शाखा पर रख लिया समीप।
अब बालकों ने तालियाँ बजायीं और हँसने लगे। सात वर्ष तीन मास, बाइस दिन के श्यामसुन्दर और उनसे दो वर्ष बड़े से लेकर दो वर्ष छोटे तक के इनके सखा- सब तालियाँ बजाते हैं, हँसते हैं। बालिकाओं में अधिकांश के बड़े अथवा छोटे भाई हैं इनमें। सब इस अपने सखा के बालविनोद में प्रसन्न हो रहे हैं। अनेक का उल्लसित स्वर है- 'अच्छा छकाया इन्हें आज कन्हाई ने।'
बालिकाओं का ध्यान बालकों की ताली तथा हास्य-ध्वनि से इधर गया। ये सब भी तो उन्हीं सब की आयु की हैं। तट की ओर देखा और चौंक गयीं कि वहाँ इनके वस्त्र तो हैं ही नहीं। अब तक तो सब परस्पर छीटें उछालने में लगी थीं। अनेक को बालकों पर क्रोध आया। वे सब बालकों से झगड़ने जल से निकलकर दौड़ ही पड़ने वाली थीं; किंतु कदम्ब के ऊपर दृष्टि चली गयी। सबकी अनेक रंगों की साड़ियाँ गड़मड़ करके सामने शाखा पर ढेर करके वहाँ जो पीताम्बर पहिने, मयूरमुकुटी नीलसुन्दर बैठे हँस रहे हैं, इन्हीं को पति बनाने के लिये तो बालिकाएँ यह पूजा कर रही हैं। अब इनके सम्मुख जल से नंगी कैसे निकलें। सहसा सबको लज्जा ने घेर लिया। सबने एक दूसरी का मुख देखा। जल में कुछ अधिक भीतर चली गयीं।
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