श्री राधाचरण रेणु --
" सद्योवशीकरण चूर्णमनन्त शक्तिम् "
श्यामा जु के पदकमल की धूलि श्यामसुन्दर को वश में करने वाली है । ऐसी धूलि कौनसी है , ब्रजरज । और भाव राज्य में नित्य धाम रज जिसे दृश्य जगत में ब्रज में ही प्राप्त किया जा सकता है । ब्रजरज में अन्तरंग और बहिरंग से भेद है । जैसे वहां करील के वृक्ष पर काँटे है । जल भी खारा है , जल की बात सब करते पर पीते फिल्टर ही , आश्रमों में भी फिल्टर ही पिया जाने लगा है क्योंकि बाहर का रूप भिन्न है । गर्मी में भयंकर गर्मी अनुभव होती है यह सब बाहरी रूप है ।
ब्रज की आंतरिक स्थिति कुछ और है ... !
किसी ने प्रियाजी को कहा इस शिखर पर चढ़ सको तो तुम्हें श्यामसुन्दर के दर्शन हो सकेंगे ।
दोपहर का समय , गर्मी के दिन । पक्की गर्मी दोपहर की , बारह से एक बजे के बीच जब बाहर होना अर्थात लू की चपेट में होना । लेकिन प्रेम में गर्मी कहाँ प्रतीत होती है , प्रियाजी प्राणनाथ मदनमोहन दर्शन के लिये बिना किसी विकल्प और बिना आवरण पद कमलों से चढ़ गयी । कमल से कोटि गुणा सुकोमल उनके चरणारविन्द , कमल की पन्खुड़ियाँ तो चुभ जाती है उन्हें । पंकज पराग बहुत कोमल होता है वह भी जिनके चरणों में चुभता हो , वहीँ श्री श्यामा पर्वत पर नँगे चरण चढ़ गयी । शिखर पर पहुँच गयी , नीचे पत्थर आग उगल रहे पर जैसे पंकजों सा ही अनुभूत हुआ हो प्रियाजु को । पर्वत कौनसा सूर्यकान्त मणि का । जो सूर्य की किरणों में अग्नि रूप दहकता है । श्री जी अग्नि की लपटों के शिखर पर ही खड़ी हो जैसे , जलते शिखर पर उनके चरणकमल । और उन्हें लगता कितना शीतल है कोई सुकोमल कमल ही है । शिखर की भीषण दाहकता अनुभूत नही हो रही , उन्हें तो अद्भुत दिव्य कमल प्रतीत हो रहा । उसी पर खड़ी श्यामसुन्दर के मुखचन्द्र की आभा-प्रभा का दर्शन कर रही । जबकि श्रीजी के मानस में उठे मिलन भाव से मुरलीधर दौड़ पड़ते हो फिर भी वह स्वयं व्याकुल दर्शन हेतु , श्री जी हर बार जितनी व्याकुल उन हेतु उतना कभी कोई कैसे हो सकता है ?
वास्तविकता यह है कि जहाँ-जहाँ प्रियाजी के पादारविन्द का गिरना होता है वहीँ (वहाँ-वहाँ ही) वृंदा भगवती अपना हृदयकमल प्रफुल्लित (खोल कर रख देती स्वयं वृंदा तत्स्थल निज हृदयकमल ) कर देती है । श्री वृंदा के खुले हुए हिवडे पर हृदय पंकज पर ही श्री श्यामाचरण कमल सदा गिरते है । श्री वृंदादेवी का जो हृदयकमल है , उसमें जो दिव्य मकरन्द युक्त पराग है वहीँ श्री प्रियाजी के चरणों में लिप्त है । उसी चरण रज मकरन्द में मधुसूदन को तत्क्षण वश करने की अद्भुत शक्ति है । यह कोई साधारण धूलि नहीं जो श्यामा चरण कमल से लगी , वृंदा के हिय का मकरन्दित पराग है । भक्तों के हृदय में भाव गहनता से हृदय के पूर्ण विकसित होकर खुलने पर श्रीजी चरण प्रकट होते है , यह हृदय तत्क्षण वृंदा हिय मकरन्द ही हुआ , श्री जी के पद रज आकर्षण से तब मनोहर श्यामसुन्दर हृदय खोल भीतर प्रकट होते है ।
जहाँ श्री जी चरण धरेगी वहीँ मोहन अपने हृदय को धर देना चाहते , और इसी लिये उनकी लीलाशक्ति वृंदा वहां प्रकट रहती ।
जहाँ युगल चरण हो वहीँ तत्क्षण धाम भी स्फुरित होता ही है श्री चरण धरने से पूर्व वह भू भाग दिव्य स्वरूप में ही होता है , शेष हो सका तो कभी आगे , सत्यजीत तृषित , जयजय श्यामाश्याम ।।।
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