Sunday, 23 October 2016

उलझन-अभिव्यक्ति - लीला

*उलझन-अभिव्यक्ति*

मानिनि ! तुम्हारी रीझ अद्भुत् है , तुम्हारी बात निराली है । मेरे पूजन-आराधन से सन्तुष्ट-पुष्ट होने पर भी तुम कुटिल कटाक्ष-बाण-सन्धान द्वारा भला, क्यों आहत कर रही हो? तुम्हारी इस रसकण चुनौती को मैं हृदय से स्वीकार, सत्य सिद्ध करूँगा ही । तुम्हीं ने उकसाया है । रँगीले रसमत्त सुघर किशोर ने मुस्करा कर अपांग चितवन प्रसून बरसाते हुये , प्रिया ने कहा । मृदुल अधरों पर राजित मुस्कान रेखा और उभर कर आई और उस उभार को रसज्ञसुन्दर ने शत-शत रस बौछार से समादृत किया , बोले ... "उत्तर दो, अच्छा, यही बताओ कि तुम्हारे अधरों की भाषा में नयनों की बात है या नयनों की भाषा में अधरों की वाञ्छा? तुम्हारे रूठने की कला आज हार गयी , हारकर एकबार फिर तुम्हारी सुरत सेनानी कुटिल नयनों ने मुझे ललकारा है । तुम्हारी मृदु मुस्कान दूतिका ने स्वयं मुझे रसरण रहस्य की सभी परिपाटी की दीक्षा दे ,  रसरण प्रवृत्ति को झँझोड़ दिया है, अब तुम्हारी एक न सुनूगां मैं "

रतिरसरण की खुमारी बढ़ती जा रही थी और वें रतिरस पारंगत साँवर किशोर रसविवश हुये, मनसिज पूजन कर ..... उन्मत हो उठे ।
उनके उन्मादक संकेत समझ दुर्गम मदन घाटी के आच्छादन को छिन्न-भिन्न कर, कर-प्रवीरों ने वहाँ प्रवेश किया । शत-शत प्रयत्न करने पर भी प्रियाजी की मूकता मुखर हो, अधर द्वार से बाहर न निकल सकी । अधरद्वय कम्पित होकर रह गए  उनके कोमल करों की मृदुलता तनिक आवेश में आई, फिर उसने रोकथाम,  पकड़-धकड़ करने का कुछ प्रयास किया, पर सबल प्रवीरों की व्यग्र गति ने उसे क्षण भर में ही पराजित कर दिया । नयनों के वह कुटिल कटाक्ष बाण शरकोष में जा छिपे । वह मधुर-मृदु मुस्कान किसी गम्भीर फड़कन में दुबक बैठी । मुखमण्डल की आरक्त शोभा और-और वर्द्धित हो, रत्यानुरागि प्रियतम को अधिकाधिक कन्दर्प वेग से सज्जित कर, न जाने किस-किस गुप्त प्रहार वार में प्रवृत्त करने लगी । सीत्कार ध्वनि की पराजय घोषणा ने भी उस उन्मत्त रणावेग को रोका नहीँ , अपितु वेग और-और बढ़ चला । पराजय-घोष की विचित्रता तो देखो, उसी ने प्रियाजी को चमत्कृत कर कुछ ही क्षणों में विजयिनी बना दिया । क्या पता, यह सब कैसे हो गया ।
प्रियतम अब प्रिया की भुज श्रृंखलाओं में दृढ़ता से बद्ध थे । उनके सुनील-सुकुमार-सुपुष्ट वपु पर रसाघात के अंक खिल रहे थे । नयनों की भाषा में अधरों की वान्छा उलझ रही थी और अधरों की भाषा में नयनों की बात व्यक्त हो रही थी । उलझन और अभिव्यक्ति के उस द्वन्द में फिर रसावेग ने हिलोरें लीं । मदन झकोरों, रतिरशिलोरों से लोलित, उद्वेलित वे रसोन्मादी युगल । ... जयजय श्यामाश्याम ।

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