Wednesday, 12 October 2016

चरण रज पद लालबलवीर जु

कानन निहार आई रसिक रसीले संग
रसिक रसीली अंग अंग हरषाती हैँ ।

कनक लता सी खासी कर कान्ह अंस धरे
रति  नेह  धरें  नैन  तीरन  चलाती  है

देख देख आली री निराली कांति आज हाली
हीरन  जटित  अलंकारन  सजाती  हैं

राधिका रँगीली की चरन रज अंचल तें
झार झार दासी निज आनन लगाती हैं ।

वृंदावन पद -

प्रीतम की प्यारी प्रिया प्रिया प्रान प्यारो पीयु ,
दोउन की दोऊ छवि-सिन्धु में तरावें हैं

दोऊ नव करें खेल दोऊ भुज अंस मेल ,
दोऊ सुख झेल झेल मन्द मुसिक्यावें हैं

लाल बलबीर वनराज के विलासी दोऊ ,
सखिन चकोरन के लोचन सिरावें हैं

गावें राग रागिनी रसीले चटकीले मुख ,
मधुर  मधुर  वर  बाँसुरी  बजावें  हैं

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खेलत हैं यामें लाल-लाडिली रसिक बर
राजत रंगीले छैल गोपिन के मन में ।

ठुमक ठुमक ताता थेई कर नाचैं कभी
झुनर मुनर बाजैं नूपुर पगन में ।

लालबलबीर सजैं चीर नव रंग नीके ,
भूषन जड़ाऊ जगमगे तन तन में ।

बिबिध बिलास कौ प्रकास जहाँ राजत है ,
ताते मन मेरौ सदाँ बसै वृन्दावन में ।

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