Wednesday, 26 October 2016

चैतन्य चरितामृत में राधा जु और वैष्णव महिमा

🔰 *श्रीमती राधारानी कौन है*🔰⚜

🌹श्रीमती राधा रानी जी महिमा श्री चैतन्य चरितामृत से ओर शास्त्रो से🌹

🔷🌿कृष्ण कांतागण देखि त्रिविध प्रकार।
एक लक्ष्मी-गण, पुरे महिषीगन आर।।
व्रजांगना रूप आर,कांतागण सार ।
श्रीराधिका हैते कांतागनेर विस्तार।।
        (C c adi lila 4.74-75)

⏩ *अर्थ*-  भगवान् श्री कृष्ण की प्रेयसियां तीन प्रकार की हैं-लक्ष्मियां,महिषियां और व्रज की गोपियां।गोपियां इन तीनो मेँ सर्वोपरि हैं।ये सारी प्रेयसियां श्रीराधा का ही विस्तार है।

♻🌸अवतारी कृष्ण यैछे करे विस्तार।
अंशिनी राधा हैते तीन गनेर विस्तार।।
        (C c adi lila 4.76)

⏩ *अर्थ*-  श्री कृष्ण सभी अवतारों के उद्गम (कारण)हैं।वैसे ही श्रीमती राधारानी से इन तीनो प्रकार की प्रेयसियों का विस्तार होता है।

✨☘गोविंदानंदिनी राधा,गोविन्द मोहिनी।
गोविन्द-सर्वस्व,सर्व-कांता-शिरोमणि।।
        (C c adi lila 4.82)

⏩ *अर्थ*-श्रीराधा गोविन्द को आनंद देनेवाली हैं और वे गोविन्द को मोहनेवाली भी हैं।वे वोविन्द की सर्वस्व हैं।ये उनकी समस्त प्रेयसियों में शिरोमणि हैं।

💠🌿देवी-कृष्ण-मयी प्रोक्ता राधिका पर देवता।
सर्व-लक्ष्मी-मयी सर्व-कांतिः सम्मोहिनी परा।।
         (C c adi lila 4.83)

⏩ *अर्थ*-परम सुंदरी श्रीमती राधारानी भगवान् कृष्ण से अभिन्न हैं।कृष्ण प्रीत्यर्थ उनकी आराधना करती हैं और सर्वाराध्या(सर्वपूज्य) हैं।सभी लक्ष्मीयो की आदि स्त्रोत हैं।समस्त कान्ति तथा सौन्दर्य का आश्रय हैं।वे सर्वाकर्षक भगवान् को आकर्षण करनेवाली हैं।अतः वे समस्त देवियों में सर्वश्रेष्ठा हैं।

❄🌻जगतमोहन कृष्ण ,ताहार मोहिनी।
अतएव समस्तेर परा ठकुरानी।।
        (Cc adi lila 4.95)

⏩ *अर्थ*-भगवान् कृष्ण जगत को मोहित करते हैं, किंतु श्री राधा उन्हें भी मोहित करती हैं।अतएव समस्त देवियों में सर्वश्रेष्ठा(ठकुरानी)है।

🍀🌷राधा पूर्ण शक्ति कृष्ण पूर्ण शक्तिमान।
दुई वस्तु भेदनाई, शास्त्र परमान।।
        (Cc adi lila 4.96)

⏩ *अर्थ*-श्रीमती राधारानी हैं पूर्ण शक्ति एवं भगवान् कृष्ण हैं पूर्ण शक्तिमान।इन दोनों में कोई भेद नही ये शास्त्र प्रमाण है।

🏵🍀राधाकृष्ण ऐछे सदा एकई स्वरूप।
लीला-रस आस्वादिते धरे दुई-रूप।।
         (Cc adi lila 4.98)

⏩ *अर्थ*-इस प्रकार राधाकृष्ण सर्वदा एक ही स्वरूप हैं।फिर भी लीला-रस का आस्वादन करने के लिए दोनो ने भिन्न रूप धारण कर रखे हैं।

🌟🌹राधिका हयेन कृष्णेर प्रणय-विकार।
स्वरूप शक्ति-ह्लादिनी नाम यांहार।।
       (Cc adi lila 4.59)

⏩ *अर्थ*-श्रीमती राधा कृष्ण प्रेम का परिवर्तित रूप है।वे ह्लादिनी नाम की उनकी अंतरंगा शक्ति हैं।

🔰🍁ह्लादिनी कराय कृष्णे आनंदास्वादन।
ह्लादिनिर द्वारा करे भक्तेर पोषण।।
       (Cc adi lila.4.6

⏩ *अर्थ* -यह ह्लादिनी शक्ति कृष्ण को आनंद प्रदान करती है और उनके भक्तों का पोषण करती है।

🌀🌺ह्लादिनिर सार 'प्रेम' प्रेमसार 'भाव'।
भावेर परमकाष्ठा,नाम-'महाभाव' ।।
        
⏩ *अर्थ*-ह्लादिनी शक्ति का सार भगवत्प्रेम है,भगवत्प्रेम का सार भाव है और भाव का अंतिम-विकास महाभाव है।

❇🌾महाभाव स्वरूपा श्रीराधा ठकुरानी।
सर्व गुणखानी कृष्णकांता शिरोमणि।।
  
⏩ *अर्थ*-श्रीमती राधा ठकुरानी महाभाव स्वरूपा हैं।वे सभी सद्गुणों की आधार हैं एवं श्री कृष्ण प्रेयसियों में शिरोमणि हैं।

🔆🌺  कृष्ण प्रेमभावित यार चितेन्द्रिय-काय।
कृष्ण निज शक्ति राधा क्रीड़ार सहाय।।

⏩ *अर्थ* - जिनका मन, इंद्रिय व् शरीर कृष्ण प्रेमसे परिपूर्ण है।वह श्री राधा श्री कृष्ण की अपनी शक्ति हैं और वे श्री कृष्ण को लीलाओं में सहायता करती हैं।

C C का अर्थ चैतन्य चरितामृत
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🌹🌹वैष्णव महिमा 🍁🍁

अन्त्य लीला चैतन्य चरितामृत चतुर्थ परिच्छेद में गौरांग महाप्रभु श्री हरिदास ठाकुर से कहते हैं -

प्रभु कहे,वैष्णवेर देह 'प्राकृत' कभू नय।
'अप्राकृत्' देह भक्तेर चिदानन्दमय।।

दीक्षा काले भक्त करे आत्मसमर्पण।
सेई काले कृष्ण तांरे करे आत्मसम।।
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*अर्थ*-श्री महाप्रभु बोले ,"हे हरिदास! वैष्णव का देह प्राकृत कभी नही होता है।भक्तों का देह सदा चिदानन्दमय अप्राकृत् हुआ करता है।
जब दीक्षा ली जाती है तब भक्त भगवान् के लिए आत्म समर्पण करता है,उसी समय से ही श्री कृष्ण उसे अपने समान चिदानन्दमय-गुणातीत कर देते हैं।

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मध्य लीला द्वाविंश(12)परिच्छेद

सर्व महा गुणगन वैष्णव शरीरे।
कृष्ण भक्ते कृष्णेर गुण सकल संचारे।।

*अर्थ*-वैष्णवों के शरीर में समस्त ही सद्गुण वर्तमान रहते हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण ,भक्त में अपने गुणों का संचार करते हैं।
श्री कृष्ण में अनंत गुण हैं, फिर भी 64 माने गए हैं।वे 64  गुण भक्तों में संचारित नही होते,भक्तिरसामृत सिंधु के अनुसार केवल 29 गुण भक्तो में संचारित होते हैं।
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