श्री राधा की एक स्थिति
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श्री राधा आज एक विचित्र सी स्थिति में हैं । उनका रोम रोम कृष्णमयी है परन्तु वो ये अनुभव करती हैं कि कृष्ण से वो कभी मिली ही नहीं हैं। सखी ये कृष्ण कौन हैं ?कैसे हैं ? क्या तुमने इनको देखा है ? मुझे इनके नाम से ही जाने क्या हो रहा है। देखो ये मेरे कंगन कृष्ण कृष्ण ही पुकारते हैँ। मेरी नुपुर के घुँघरु ये भी उन्मादित हो रहे। इनको भी कृष्ण कृष्ण के सिवा कुछ सूझता ही नहीं है। देखो हर ध्वनि केवल कृष्ण कृष्ण कृष्ण .......मुझे कुछ और सुनाई ही नहीं दे रहा।
सखी मुझे बताओ ये कृष्ण कौन हैं मेरा मन बलात् ही अपहरण किये हुए हैँ। क्या किसी को बिन देखे बिन जाने भी ऐसे हो जाता है। मुझे इनके सिवा न कुछ अच्छा लग रहा है न ही कुछ सूझ रहा है। श्री राधा कृष्णसिन्धु में ऐसी डूबी हुई हैँ की उन्हें और कुछ लगता ही नहीं है।
इस सिंधु से विभिन्न तरंगे प्रवाहित हो रही हैं । कभी कृष्ण कृष्ण कहती कहती मूर्छित हो जाती हैं । पुनः चेतन होती हैँ तो कृष्ण कृष्ण को ही पुकारती हैं। कभी कभी अनुभव करती हैँ की कृष्ण बाहर आ गए हैं सहसा बाहर की और दौड़ पड़ती हैं । कभी कभी टकरा कर गिर पड़ती हैँ। सखियाँ उन्हें इस स्थिति से बाहर लाने की बहुत चेष्ठा करती हैँ ।
राधा पुनः चेतन होती हैं और एक सखी को अपने सन्मुख देखती हैं और उसे ही कृष्ण मान लेती हैं। कृष्ण तुम आ गए इतनी देर तक तुम कहाँ थे। देखो कब से तुम्हें पुकार रही हूँ । सखी से लिपट जाती हैं और जोर जोर से कृष्ण कृष्ण कह रोने लगती हैं । सखी उन्हें कहती है राधे राधे देखो तो मैं तो तुम्हारी सखी हूँ मैं कृष्ण नहीं हूँ। रोते हुए पुनः सखी की और देखती हैं और कहती हैं नहीं नहीं तुम कृष्ण ही हो। देखो तुम ही कृष्ण हो मुझ से छिपो नहीं कह दो तुम ही कृष्ण हो। पुनः रुदन करती करती मूर्छित हो जाती हैं। पता नहीं उनकी ये स्थिति कब तक रहने वाली है।
जय जय श्री राधे
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