Friday, 14 October 2016

गोपी भाव

•••  गोपी भाव •••
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गोपिकाएं 🌹👏

● कुमारिकाएं - जिन्होंने कात्यायनी का व्रत रखकर पतिरूप में कृष्ण को कामना की, उनका प्रेम स्वकीय प्रेम है और मर्यादा पुष्टि के अंतर्गत आता है।

● गोपांगनाएं - गोपांनाओं ने लोक और वेद दोनों की मर्यादा का अतिक्रमण करके परकीया भाव से प्रेम किया था। इस प्रेम भाव को पुष्टिप्रेम कहा जाता है।

● व्रजांगनाएं - व्रजांगनाओं का प्रेम वात्सल्यभाव का था। आचार्य श्रीवल्लभ  आज्ञा करते हैं कि
कृष्णाधीना तु मर्यादा स्वाधीना पुष्टिनोच्यते ।
मर्यादा भक्त प्रभु के आधीन है और पुष्टि भक्त के आधीन प्रभु हैं ।
प्रभु गोपी भाव से याद करने पर प्रकट हो जाते है
निरन्तर भक्ति भाव से ही गोविन्द की प्राप्ति होती है।
जो भक्त निरन्तर गोपी भाव से अपने गोविन्द को भजते हैं, उस पर भगवान श्री हरि अवश्य ही कृपा करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी स्वयं गीता में कहा है।
"तेशां सततयुक्तां भजतां प्रीतिपूर्वकं,
ददामि बुद्धि योगं तं येन मामु पयान्तिते"
अर्थात् जो निरन्तर मेरे ध्यान में लगे हुए प्रेम पूर्वक मेरा भजन करते हैं, उन्हें मैं तत्वज्ञान रूप योग देता हूं, जिससे वे मेरे को ही प्राप्त होते हैं।
गोपियां भी तो यही भाव रखती थीं।
गोपी किसी स्त्री जाति को नहीं कहते बल्किह गोपी तो एक भाव का नाम है।

गोपी का अर्थ है 'गौ' अर्थात् इन्द्रिय और 'पी'अर्थात् पीना।
गो भिः इन्द्रियैः कृष्णरसं पिबति इति गोपी।

अर्थात् जो प्रत्येक इन्द्रिय से हर परिस्थिति में उठते बैठते, चलते फिरते श्रीकृष्ण रस का पान करें। श्रीकृष्ण का ही चिन्तन करें वह गोपी हैं. ब्रजमण्डल की जितनी भी गोपियां थीं वो निरन्तर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में ही अपना ध्यान लगाती थीं। गोपी के गोरस में कृष्ण गोपी के माखन में कृष्ण गोपी के हर काम में कृष्ण ।
मानस वाचा कर्मणा हर जगह कृष्ण ही रहतेसथे, और इसी भाव ने उन्हें गोपी बनाया।
यदि हम भी अपने कन्हैया को गोपी भाव से याद करेंगे, तो वो प्यारा सा कन्हैया आज भी हमारे आपके बीच में प्रकट हो सकता है ।।
"श्याम वर्ण मनोहारी गौर वर्ण श्यामा अति प्यारी दोऊ मिलहि हरित वर्ण प्रेमरस बरसहि"

लाल लाल लाल हुई
गौरवर्ण लाल ललाम हुई
सुन वंशी की धुन लली
स्वयं लाड़ली लाल हुई

सम्पूर्ण हाथ व भुजा पर"कृष्ण कृष्ण"लिखा देख प्रिया जु कुछ घड़ी पूर्व हुई अपनी विरह दशा विस्मृत कर जातीं हैं और प्रसन्न होकर खुद में ही कृष्ण भरे हुए महसूस करने लगतीं हैं।उन्हें अपने प्राणप्रियतम से तनिक भर भी दूरी का एहसास नहीं है।"कृष्ण कृष्ण"रंग में रंगी प्रिया जु कृष्ण ही होने लगतीं हैं।उनमें महाभाव का संचरण होता है और सिमटी कम्पित देह में वो श्यामसुंदर को ही पातीं हैं।सखियाँ उनमें हो रहे इस परिवर्तन पर बलिहारी जातीं हैं और तीव्र भाव से"कृष्ण कृष्ण" गा उठती हैं।अब उनमें ऐसा प्रेम उन्माद भरा है कि उन्हें हर कहीं श्यामसुंदर ही नज़र आ रहे हैं।
अचानक उनका ध्यान उन अपनी उल्लसित सखियों पर और उनके गायन पर जाता है।सब सखियों को "कृष्ण कृष्ण" गाते देख वे अचंबित होतीं हैं और स्वयं राधा होकर राधा का ही नामुच्चारण कर नृत्य गायन में शामिल हो जातीं हैं।उनके मुख से "राधे राधे" सुन विस्मित सखियाँ एक बार के लिए शांत हो जातीं हैं।
प्रिया जु उन्हें "राधे राधे"पुकारने को कहतीं हैं क्योंकि श्यामसुंदर तो वे खुद हैं और सबमें भी श्यामसुंदर ही भरे दिख रहे हैं उन्हें तो श्यामसुंदर को तो "राधे राधे" नाम ही सुहाता है ना तो सब सखियाँ "राधे राधे" गा उठतीं हैं।सखियों के नेत्रों से अनवरत अश्रुधार बह रही है और वे "राधे राधे" गाती हुईं प्रियालाल जु के अद्भुत प्रेम की बलिहारी जाती हैं।भिन्न होकर भी अभिन्न हैं युगल।कभी भी इनका बिछड़ना तो हुआ ही नहीं।
सब को "राधे राधे" कहते सुन श्यामा जु कुछ ही क्षणों में फिर से अधीर हो उठतीं हैं और उनको सखियों में राधा ही राधा दिखने लगती हैं और वे वहीं चुपचाप सी गुमसुम बैठ रोने लगतीं हैं।सखियों को भी अब सुद्ध नहीं है।वे सब राधा नाम उच्चारती हुईं मंत्रमुग्ध सी हो रही हैं।श्यामा जु समझ ही नहीं पा रहीं कि आखिर उन्हें क्या होता जा रहा है।कभी सब कृष्ण हैं तो कभी स्वयं कृष्ण हैं।कभी सब राधे हैं तो स्वयं वो श्यामसुंदर हैं।इसी भाव में डूबती उतरती श्यामा जु अधीर हुईं बैठीं हैं कि तभी वहाँ वंशीधारी श्यामसुंदर जु आ जाते हैं जिनकी रूपछटा को निहार श्यामा जु उन्हें देखती ही रह जातीं हैं और सखियों को अभी भी कोई ज्ञान ही नहीं कि श्यामा श्यामसुंदर जु वहाँ उपस्थित हैं।वे अभी भी"राधे राधे"नाम में डूबी ताल मृदंग बजा रही हैं और श्यामसुंदर भी अपनी प्रिया का नाम सुन मदहोशी से अधीर श्यामा जु को अपनी बाहों में भर लेते हैं।*गोपी प्रेम*

आज लाला कन्हैया के आँखन मे काजल लगाने को दिन है! नन्द बाबा की बहन सुनन्दा देवी जो कन्हैया की बुआ लगती है चटकती मटकती आयी और यशोदाजी से बोली की..

सुनन्दा जी -- भाभीजी लाला को काजल लगावे का हक हमारो है।

श्री यशोदा जी -- हाँ बीबी जी लगाओ आप ही लगाओ।

सुनन्दा जी -- ऐसे नही लगाऊँगी मेरो को भी नेग चाहिये।

यशोदा जी -- हाँ बीबी जी आपको भी नेग मिलेगो।

सुनंदा जी -- देखो भाभी जब लाला के  नाल छेदन के समय नाल काटने वारी दासी नेग के लिये मचल गई की व्रजरानी बहुत दिनन बाद लाला हुआ हुआ है नेग सोच समझकर देना तो आपने अपने गले का नौलखा हार उतारकर उसे पहना दी वाते कमती मुझे मत करियो नही तो ननद भाभी दोनन की झगड़ा बन जायेगी और हमेशा के लिये ननद भौजाई की शिकायत बनी रहेगी।

यशोदा जी -- नही नही बीबी जी वाते बढ़ चढ़के मिलेगो।

फिर सुनन्दा बुआ ने लाला श्यामसुन्दर को काजल लगाई और सोच रही है की देखे भाभी क्या देती है ज्योंही सुनन्दा बुआ ने हाथ बढ़ाये की लाओ मेरा नेग दो तो श्री यशोदा जी ने कन्हैया को उठाकर उनकी गोदी मे दे दी और सुनन्दा जी के मुखमंडल पर दृष्टि डाली की बीबी जी कछु कसर रह गयी हो तो दउँ कछु और?

आँखन मे आँसू आ गये। सुनन्दा बुआ के बोली भाभी याते कीमती और क्या हो सकता है। तूने तो अपना सर्वस्व दे दिवो।

अब लाला मुझे नेग मे मिल्यो तो लाला तो हमारो हय गयो।लेकिन भाभी मेरी छाती मे दूध नाय। लाला को दूध पिलावे को कोई धाय रखनो पड़ेगो और देख तेरी छाती मे दूध फालतू पड़ो रहेगो। क्या फायदो धाय रखने को।

लेव मै तोहि को अपने लाला के लिये धाय के रुप मे नियुक्त करती हूँ। मेरो लाला को खूब ध्यान रखियो और उन्होने लाला कन्हैया को यशोदा जी के गोद मे दे दिया। *इस तरह से खूब आनन्द हो रहा है ब्रज मे।*
               
भगवान श्रीकृष्ण साक्षात् लीलावतार हैं। उनकी लीलाएं अनन्त हैं। उन्होंने अपनी दिव्य लीलाओं के माध्यम से विभिन्न प्रयोजनों हेतु अनेक प्रणियों का उद्धार किया।

गोपियां श्रीकृष्णप्रेम की पराकाष्ठा हैं। गोपियों के मन, वाणी और शरीर श्रीकृष्ण में ही तल्लीन रहते। गोपियों का हृदय प्रेममय है, श्रीकृष्णमय है, अमृतमय है।

वे सुबह उठते ही श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए नन्दभवन जाती। गोपियों को सुबह जागने के बाद कन्हैया की याद आती है। गोपियों का ऐसा नियम है कि वे मंगला के दर्शन (ब्राह्ममुहुर्त में भगवान के सोकर उठने के बाद के पहले दर्शन) करने के लिए जाती है। मंगला के दर्शन ब्राह्ममुहुर्त में ही होते हैं। मंगला के दर्शन का अर्थ है कि सुबह सबसे पहिले भगवान का दर्शन करना।

गोपियां नन्हे श्यामसुन्दर के दर्शन कर, उनकी मधुर किलकारी सुनकर आनन्द-विभोर हो जातीं और कन्हैया को हृदय से लगाने पर उनको ऐसा लगता मानो कोई अमूल्य निधि मिल गयी हो। श्यामसुन्दर के नित्य दर्शन कर गोपियां अपने को बहुत भाग्यशाली मानती।

चलो री सखि !
श्याम दरश करि आवें।
निरखत श्याम नयन नहिं थाकत,
केतिक घड़ी बितावें!
किलकारी की मधुर ध्वनि सुनि,
आनन्द हिय भरि जावें।
बालक श्याम  इतौ मनुहारी,
गोद लेन  ललचावें!
पल दो पल को अंक लेइ कै,
मनो अमित धन पावें।
मन ना भरत निरखि कान्हा छवि,
निज गृह क्योंकर जावें।
बड़ो भाग्य हम गोकुल ग्वारिन,
श्याम दरस नित पावें।

यशोदाजी कहती–अरी सखियों! अभी तो अँधेरा है। तुम इस समय आई हो? गोपियां कहतीं–’कन्हैया के दर्शन के बिना हमें चैन नहीं पड़ता।इससे लाला के दर्शन करने आईं हैं।

गोपियाँ बालकृष्ण के पालने के चारों ओर खड़ी होकर श्रीकृष्ण के एक-एक अंग में आंखें स्थिर करती हैं। गोपी मात्र ग्वालिन नहीं हैं। *गोपियाँ भक्ति-सम्प्रदाय की आचार्या हैं।* गोपियाँ जगत को समझा रही हैं कि भक्ति कैसे की जाती है। *भगवान के स्वरूप में आसक्ति को भक्ति कहते हैं।* संसार में आसक्ति ही माया है। परमात्मा के स्वरूप में मन और आंखें आसक्त बनती हैं, वही भक्ति है। परन्तु ऐसा करना सरल नहीं है। मन बार-बार संसार की ओर भागता है पर अपने मन को समझाना पड़ता है कि संसार सुन्दर नहीं है। सुन्दर तो केवल श्रीकृष्ण हैं। *एक गोपी श्रीकृष्ण के चरणों की प्रशंसा करते हुए दूसरी गोपी से कहती है–’अरी सखी ! लाला के चरण कितने सुन्दर हैं, उनके तलवे कितने लाल हैं, नाखून तो रत्न से हैं।* इनके चरणों में कमल व स्वस्तिक का चिह्न है।’ इस तरह दास्य भाव में गोपी भगवान के चरणों में ही दृष्टि रखती है।

*एक दूसरी गोपी को श्रीकृष्ण का रंग बहुत पसन्द है। वह कहती है–’लाला का श्रीअंग मेघ-सा है। इनके नेत्र कमल से हैं। बाल भी कितने सुन्दर हैं।’ इस गोपी का सख्य व वात्सल्यभाव है, उसे श्रीकृष्ण का मुख देखे बिना चैन नहीं आता है।*

सूरदासजी कहते हैं–गोपियां श्रीकृष्ण का दर्शन करते हुए विनती करती हैं।

*जागिए, व्रजराज-कुँवर।*
*कमल-कुसुम फूले।*
*कुमुद-बृंद सकुचित भए*
*भृंग लता भूले।*
*तमचुर खग रोर सुनहु,*
*बोलत बनराई।*
*राँभति गो खरकनि मैं,*
*बछरा हित धाई।*
*बिधु मलीन रबि-प्रकास,*
*गावत नर-नारी।*
*सूर स्याम प्रात उठौ,*
*अंबुज-कर-धारी।*

अर्थात्– व्रजराजकुमार, जागो ! देखो, कमलपुष्प विकसित हो गये, कुमुदनियों का समूह संकुचित हो गया, भौंरें लताओं को भूल गये (उन्हें छोड़कर कमलों पर मँडराने लगे )। मुर्गे और दूसरे पक्षियों का शब्द सुनो, जो वनों में बोल रहे हैं; गोष्ठों में गायें रँभाने लगी हैं और बछड़ों के लिए दौड़ रही हैं। चन्द्रमा मलिन हो गया, सूर्य का प्रकाश फैल गया, स्त्री-पुरुष प्रात: कालीन स्तुति का गान कर रहे हैं। कमल-समान हाथों वाले श्यामसुन्दर ! प्रात:काल हो गया, अब उठो।

*जय श्री राधे* *....*🌹
*जय श्री कृष्ण* *.....*🌹
ईदं न मम
संकलन सादर  🌹👏पोस्ट
ईदं न मम विनीत
🙏 🌹 🙏 🌹 🙏 🌹 🙏

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