कान्हा का चित्र
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श्री जू मोहन का एक चित्र लेकर बैठी हुई है । जाने कितने समय तक उस चित्र को टिकटिकी लगा कर देखती रहती है। उस चित्र में मोहन को स्पर्श कर आनंदित हो रही है। भिन्न भिन्न समय पर उसे भिन्न भिन्न भाव हो रहे हैं। कभी आँखों को देखती रहती है देखती देखती डूबती जा रही है। कभी उनके होंठ देखती है और उन्मादी होकर चूमने लगती है । ये चित्र न होकर मोहन ही हों प्रत्यक्ष में। कभी उनकी मुस्कान को देख देख पूछती है तुम इतने प्रसन्न क्यों हो कान्हा। तुम हंसते खिलखिलाते कितने अच्छे लगते हो।
कभी उस चित्र को चूमने लगती है कभी उसे अपने हृदय से लगा लेती है। चित्र के आलिंगन में ही अनुभव कर रही है कि मोहन उसके संग ही हैं। जाने कितना समय यूँ ही बैठी है। जैसे सब सिमट कर उसके चित्र में ही समा चूका है। अन्य कोई होश ही नहीं रही। बस श्यामा इस चित्र में ही पूरी तरह डूब गयी है। कान्हा कान्हा तुम सदा मेरे संग ही रहो न। मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे। कुछ देर पश्चात वो रोने लगती है और अश्रु बिंदु उस चित्र पर गिरने लगते हैँ तो उसे प्रतीत हो रहा है कि कान्हा रो रहे हैं। कान्हा तुम इतना प्रेम करते हो मुझसे। तुम मेरे अश्रु भी नहीं देख पाते । तुम भी रोने लग जाते हो। नहीं नहीं देखो अब मैं नहीं रोऊँगी। मेरे रोने से तुम्हें पीड़ा होती है। अब मैं कभी नहीं रोऊँगी।
चित्र लेकर बाहर चली जाती है बाहर तेज़ वर्षा शुरू हो जाती है । वर्षा की बूदें इस चित्र पर पड़ती हैँ और सब रंग धुल जाते हैं केवल सफेद रंग शेष रह जाता है । कुछ देर पश्चात भीतर लौटती है। अपने ही आनन्द में उन्मादित है की मोहन संग वर्षा का आनंद ले रही थी। तभी चित्रपट की और देखती है। हाय !! कान्हा चले गए। मुझे छोड़कर चले गए। अभी अभी तो मेरे संग थे। अभी तो हम वर्षा का आनंद ले रहे थे। अभी तो आलिंगन में थे । कान्हा कान्हा ...... पुकारती पुकारती उस चित्रपट की और देख देख रुदन कर रही है ।
अच्छा तुम मुझे रोते नहीं देख पाओगे। जानती हूँ तुमको पीड़ा हो रही है। तुम छिप गए हो ना । आओ कान्हा मेरे सामने आओ देखो अब मैं नहीं रोऊँगी। कान्हा कान्हा ......क्या तुम मुझे सुन रहे हो। तुम क्यों नहीं सामने आ रहे । इस प्रकार इस स्थिति में श्री प्रिया जाने कब तक रहती हैँ।
जय जय श्री राधे
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