Thursday, 20 October 2016

नित्य विहार और ललिता सखी की कृपा

राधे राधे,,संसार में ये बात प्रसिद्ध है कि खेल, खिलाड़ी के अधीन होता है,उसी प्रकार यहाँ श्री वृन्दावन ,नित्य विहारोपासना में श्री ललिता सखी जो दम्पति श्री नित्यविहारी-नित्य विहारिणी के हृदय के प्रेम रस आह्लाद की स्वरूप हैं, के अधीन नित्यविहारी दम्पति हैं।रसरूप,रासधिष्ठात्री श्री ललिता जी के बिना रसमय केलि-नित्यविहार अत्यंत दुर्लभ है।इसीलिए निजसखी उन से याचना करती है।नित्य विहारी उन निजसखी श्री ललिता जी से उस नित्य विहार की याचना करते हैं , तभी उन्हें नित्य विहार की प्राप्ति होती है।
खेल खिलाड़ी वश रहे,ऐसे जुगल किशोर,श्री हरिदासी लाड़(पोष)सौं ,नही जानें निसि भोर।
खिलाड़ी श्री हरि दास हैं,खेल लाड़ली लाल।राखत अद्भुत रंग में ,जनि महा निजु हाल।।(आचार्य चरण श्रे स्वामी ललित किशोरी देव जी )
कूची नित्य विहार की, श्री हरी दासी हाथ।सेवत साधक सिद्ध सब,जाचत नावत माथ।(गुरुदेव श्री स्वामी बिहारिनिदेव जी)
भगवत पायँ परौं ललिता के राज करौं चिर सुखदाई।।(श्री स्वामी भगवत रसिक देव जी )
अति उदार हरिदास जू,नित्य बिहार के दानि।सहज हेत जानें कहूँ ,गहें सु हँसी के पानि।
श्री स्वामी हरिदास जू, नित्य केलि के दानी।लाड़ लड़ावत प्रियलालबर,महा प्रेम सुख खानि।(स्वामी ललित किशोरी देव जी )
-वशे खेलयितुर्लोके खेलकोस्तीति विश्रुतम।
तथात्र ललितसख्या वशे नित्य विहारिनौं||
अत्तेव दुर्लभो नित्य विहारो ललितं विना।
यतस्त ,याचते नित्य विहारी तां सखी प्रति।।[['ऊद्धृत==''श्री स्वामी हरिदास महिमामृत'''रसिकवर श्री नन्द किशोर दास जू '''कृत से ..जय जय श्री राधे

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