Thursday, 9 June 2016

श्री प्रिया लाल जू की अद्भुत जल केलि का दर्शन ( निकुंज रस )

श्री प्रिया लाल जू की अद्भुत जल केलि का दर्शन (  निकुंज रस ) :

नित्य निकुंज में प्रिया लाल का नित्य विहार अनंत काल से चल रहा है फिर भी श्री जी की केलि नित्य नई नित्य नूतन है ! दृढ़ व्रत श्री हरिवंश को मिटे ना नित्य विहार - यह ब्रम्हांड इधर से उधर हो सकता है पर श्री हित हरिवंश जी का ये दृढ़ संकल्प है की उनके प्यारे दुलारे श्री युगल का नित्य विहार कभी टल नहीं सकता ! और श्री धाम वृंदावन के नित्य निकुंजों में श्री राधावल्लभ लाल का ये अचल विहार अनादि काल से चल रहा है और सदा सर्वदा चलता ही रहेगा ! निभृत निकुंज में शरद वसंत आदि षड ऋतुएँ सदा ही विद्यमान रहती है और श्री प्रिया लाल की रूचि एवं संकल्प अनुसार चाही गई ऋतु वृंदावन में उपस्थित हो जाती है !
आज हम श्री श्यामा श्याम की दिव्य जल केलि की लीला का दर्शन करने जा रहे हैं इस लीला का दर्शन करने के लिए हम आश्रय ले रहे हैं परम रसिक श्री चाचा जी श्री हित वृंदावन दास जी महाराज की वाणी का ! रसिक जनों ने श्री प्रिया लाल जू की साक्षात् निकुंज लीला का दर्शन कर के फिर वो रस हम सबको दिया है वो " श्रृंगार रस सागर " ही तो हम राधावल्लभीय रसिक जनों की अमूल्य निधि है ! तो आइये अब प्रिया लाल जी महाराज की दिव्य जल केलि का दर्शन करें ! इस समय प्रिया लाल जू की उस दिव्य निकुंज में ग्रीष्म ऋतु छाई भई है और श्री श्री प्रिया लाल जू के मन में जल केलि करने की रूचि उपजती है ! चाचा श्री वृंदावन दास जी महाराज कहते हैं की :
" लाल रविजा जल खेल जमायो "
अंजुलिनु भरि - भरि सन्मुख मेलत ग्रीषम ताप नसायो
कबहुँ हटत पछमनै कबहूँ करतल भुज पटकायो
कबहूँ लै बुड़की नागर छल भेद कछु उपजायो
श्री युमना जी के रस प्रवाह के मध्य में आज श्री लाल जी ने जल केलि का खेल रचा है ! संग में श्री प्रिया जी सुशोभित हैं एवं श्री प्रिया जू की अष्ट सखियाँ एवं अंतरंग सखी श्री हित सखी ( अर्थात सखी भावापन्न श्री हित हरिवंश जी महाराज ) भी अपने परमाराध्य श्री युगल की जल केलि का दर्शन कर रहीं हैं ! प्रियतम सर्वप्रथम अपनी अंजुली में जल भर कर सामने से अपनी प्रिया जू के मुख् पर डालते हैं और अचानक प्रियतम द्वारा की गई इस जल वर्षा किवां रस वर्षा से क्षण मात्र में प्यारी जू को अत्यन्त शीतलता का अनुभव हुआ और प्रेम का ताप एवं ग्रीष्म का ताप लाल जी ने पल भर में दोनों ताप दूर कर दिए !
पद परसत ही नागरी जान्यो रोमांचित व्है आयो
समुझि हंसी प्रियतम चतुराई बरबस चरन उठायो
प्यारी जू के श्री मस्तक का जलाभिषेक कर के लाल जू थोड़ा पीछे की ओर हो कर फिर आनंद से विनोद एवं परिहास करते हुये ताली बजाने लगते हैं ! लाल जी को आज अवसर प्राप्त हो गया तो वो मीन की भाँती जल के अंदर डुबकी लगा कर जल के भीतर छिप जाते हैं और छल पूर्वक उन्होंने अपनी प्रिया जी के जल के अंदर ही चरण स्पर्श कर लिए ! लाल जू  के द्वारा अचानक से किये गए इस चरण स्पर्श से प्रिया जू के श्री अंगों में रोमांच हो उठा और श्री प्रिया जू ने अपने प्रियतम की चतुराई पर मुग्ध हो कर हँसते हुए अपने चरणों को जल से बाहर निकाल लिया !
कबहुँ चलत मीन गति लैके गौं हन सबहिं लगायो
आवत उलटि तीर कबहूँ भुज गहि मंडल जु बनायो
प्रियतम होड़ प्रिया सौं बदि के खेल रच्यो मन भायो
दूर बैठि जु नील कमलनि कोलाहल सखिन बढ़ायो
श्री चाचा जी आगे की लीला का दर्शन कराते हुए कहते हैं की अब श्री प्रिया जी जल में मछली की गति से चलने लगीं और उनके पीछे सभी सहचरियाँ भी ! श्री प्यारी जू मीन की भाँती कभी आगे की ओर जाती हैं और फिर कभी तैरते हुए तट की ओर वापस आ जाती हैं ! मध्य में श्री प्रिया जू हैं और समस्त सहचरियाँ परस्पर हाथ पकड कर एक गोल सुरक्षा घेरा बन लेती हैं ताकी फिर से लालजू प्रियाजू के चरण न पकड़ लें ! लाल जी प्रिया जू के चरण स्पर्श करने का मनोभाव रख कर बार बार जल के भीतर बुड़की लेकर छिप जाते हैं !
किन्तु जब सखियों के आवरण के मध्य में होने के कारन प्रिया जू के पास पहुँचने में विफल हो गए तब वो प्रिया जू के साथ एक नया खेल खेलने की बात कहने लगे !
लाल जी कहते हैं की प्रिया जू अब हम जल में छिपने का खेल खेलेंगे और अगर आपने हमे ढूँढ लिया तो आप जीतीं और नहीं ढूँढ पायीं तो हम जीते ! अब तो प्रिया जू और लाल जू में होड़ लग गई ! प्रिया जू ने जैसे ही प्रियतम की शर्त को स्वीकारा वैसे ही प्रियतम जल के भीतर उतर गये ! श्री यमुना में भाँती भाँती के कमल के पुष्प खिल रहे हैं पर लाल जू अति प्रवीण हैं इस खेल में और वो सखियों और प्रिया जू की नजर बचा कर उस स्थान पर छिप गये जहाँ बहुत से नील कमल खिले हुये थे ! अब नील कमल के बीच छिपे हुये नीलवर्ण श्याम सूंदर को कोई पहचान नहीं पा रहा है और दूर से वो भी नील कमल से ही प्रतीत हो रहे हैं ! होड़ जीति नहीं जाउ लाल यों ललिता वचन सुनायो ! तभी श्री ललिता जी बोलीं की लाल जू  आप ऎसे ही थोड़ी होड़ जीत जाओगे, आप कहीं पर भी छिपे हो किन्तु हमारी ठकुरानी की नज़रों से नहीं बच सकते ! श्याम सूंदर दीख नहीं रहे हैं और सखियों के मध्य कोलाहल का वातावरण है की कहीँ श्यामसुंदर ये बाजी ना जीत जायें ! वातावरण अब थोड़ा गंभीर हो गया क्योंकि प्रियतम दीख नहीं रहे हैं ! समुझि न परत श्याम की लीला वरन में वरन मिलायो - नीलकमल और श्याम सूंदर के एक वर्ण होने से सब भ्रमित हो गए पर प्रिया जू कैसे भ्रमित हो सकती हैं ! प्यारी जू सखियों से कहती हैं की देखो वो रहे, उन नील कमलों के मध्य में ! सखियाँ कहती हैं की प्यारी जू वहां तो सब के सब नील कमल हैं वो भी एक जैसे फिर आपको प्रियतम कैसे पहचान में आ रहे हैं तो प्रिया जू कहे रही हैं की - " भ्रमत ना जापे मधुप कमल, प्यारी जू ताही बतायो ! " प्यारी जू कहती हैं री सखियों ध्यान से देखो उस कमल को ! जिस कमल पर भ्रमर नहीँ मंडरा रहे हैं वो नील कमल नहीं हैं वही मेरे प्रियतम मेरे नीलमणि मेरे श्यामसुंदर हैं ! इस प्रकार लाल जी प्रिया जी द्वारा खोज लिए गये !
हर हर हंसी विशाखा स्वामिनी ! तैं हम वचन जिवायो !
परम प्रवीन जददपि तुम मोहन नाम साँचिलो पायो
प्रिया विचछन आगैं तद्दपी छदम प्रकट दर्शायो
तभी विशाखा सखी बोल पड़ी की हे स्वामिनी जू आपने हमारी बात रखली ! हे प्यारी जू आपका स्वामिनी नाम आज सत्य प्रतीत होता दीख रहा है ! विशाखा जी कहती हैं की हे श्यामसुंदर आप बड़े चतुर  शिरोमणि बने फिरते हो लेकिन आज हमारी प्रिया जू के समक्ष आपका ये छद्म वेश टिक नहीं सका और आप होड़ में हार गये !
सुघर होड़ पूरी ना पड़ी सखी कही यों कर जू नचायो
चहुँ दिस ते घेरे जु नीर अंजुली भरि भरी बरसायो
दामिनी निकर रूप घुरवा को मनु अभिषेक करायो
श्री राधा जू दुरनि विचारी श्याम सु आसै पायो
मृदुल कनक ओपे अम्बुज तिनके मधि वदन दुरायो
प्रिया जू ने श्यामसुंदर को पहचान लिया उसके पश्चात सभी सखियाँ लालजी को घेर कर अपनी अपनी अंजुली में जल भर कर प्रियतम पर रसबूँदों की वर्षा  करने लगीं ! श्री प्रिया जू एवं सखियों के द्वारा की जा रही जल वर्षा से जब लाल जू भींज रहे हैं तो शोभा ऐसी है की जैसे स्वयं मेघों के मध्य से प्रकट होने वाली दामिनी ही आज श्यामवर्ण के मेघ का अभिषेक कर रही है ! तभी एक सखी हाथ नचा कर बोली श्यामसुंदर अभी तक होड  पूरी नहीं हुई है ! अब प्यारी जू छिपेंगी जल में और आप उन्हें खोजेंगे ! उस क्षण प्यारी जू ने मन में कुछ विचार किया और फिर लाल जू की चतुराई उन पर ही चलाने की सोची ! सखियाँ श्यामसुंदर को घेरे हुए खड़ी हैं ! प्रिया जी की आभा स्वर्ण को भी फीकी करने वाली हैं इसलिए अवसर का लाभ लेते हुए श्री प्यारी जू जल में उस स्थान पर छिप गईं जहाँ पर बहुत सारे स्वर्ण भान्वित कमल खिले हुए थे ! अब प्रिया जू ने स्वयं को स्वर्ण कमल के समूह के मध्य में एक वर्ण कर लिया !
लेत भांवरे लाल, बिना देखे हिय अति अकुलायो
खोजत कमल नवल चित चौंपनी जल बल भुजनि हिलायो
प्रिया जू के छिपते ही उनका दर्शन ना पा कर लाल जी आकुल व्याकुल अधीर हो कर हर प्रकार के कमलों के मध्य अपनी प्रिया जू को खोज रहे हैं ! चित की चौंप बढ़ती ही जा रही है ! अनुमान तो है श्यामसूंदर को उनकी प्यारी यहीं कहीं इन् कमलों के मध्य ही होंगी पर दीख क्यों ना रई हैं !
और खोजते खोजते लाल जी ने अपनी भुजाओं का सारा बल लगा कर सम्पूर्ण जल को हिला दिया !
" हाले कमल प्रिया नहीं हालीं प्रीतम लखि मुसकायो " जल के हिलने से सब प्रकार के कमल हिल गए लेकिन फिर भी प्रिया जू रंच मात्र भी नहीं हिलीं !  कमल तो हिल रहे हैं पर  प्रियाजू नहीं हिलीं वो तो अब भी स्वर्ण कमलों के मध्य में ही स्थित हैं तभी अचानक प्रियतम को हँसी आ गई ! क्यों ऐसा क्या हुआ प्रियतम क्यों हँस पड़े ! लाल जू इसलिए हंस रहे हैं क्योंकि - बेनी तें खुले कुसुम तैरत भये जल ते ऊपर आयो ! जल हिलाने से कमल तो हिल गये पर प्रिया जू नहीं हिलीं और उनके मध्य ही छिपी रहीं लेकिन तभी लाल जू ने जल के ऊपर तैरते कुछ पुष्प देखे जोकि स्वर्ण कमल के समूह के मध्य से बहकर आ रहे हैं ! लाल जी पहचान गये की अरे ये तो जूही के वही पुष्प हैं जिनके द्वारा जलक्रीड़ा से पूर्व लाल जी ने प्रिया जी की वेणी का श्रृंगार किया था ! लाल जी कहते हैं की हे स्वर्णभावित कमलन के मध्य बिराजवे वारी स्वामिनी हे प्यारी जू हमने आपको खोज लिया है अब नेक दर्शन को आनंद प्रदान कीजिये ! अरे अब तो प्रश्न खड़ा हो गया की आज की होड़ में किसको जीता माने और किसको हारा हुआ ?

रहे बराबर कहें हित सजनी इहि सुख हियों सिरायो
धनि कालिंदी आनंद आलय दंपति लाड लडायो
वृंदावन हित रूप महारस कौतिक आजु दिखायो

तभी हित सखी या हित सजनी अर्थात सखिभावापन्न श्री हित हरिवंश जी महाराज कहते हैं की आज की बाजी में दोनों ही बराबर रहे किंतु श्री हरिवंश दुलारी प्रिया जी ने एवं श्री हरिवंश के लाडले लाल जी ने जल केलि में परस्पर होड़ ठान कर हृदय को आनंद से आल्हादित कर दिया और जल क्रीड़ा की झाँकी का उपसंहार करते हुए श्री चाचा जी कहते हैं की निभृत निकुंजों में अनवरत क्रीडा करने वाले दिव्य दम्पति को लाड लड़ाने वाली कलिंदनंदिनी हे यमुना रस रानी आप धन्य हैं धन्य हैं धन्य हैं ! आपकी कृपा से ही आज इस हित वृंदावन दास को आश्चर्य पूरित श्री युगल की केलि का ये निकुंज रस प्राप्त हुआ है !

" राजैं नन्द जू के लाल बृषभानु की लली, दिव्य दंपति की आरती उतारो हे अली ! "

जै जै राधावल्लभ हित हरिवंश जै जै श्री वृंदावन श्री वनचन्द !

जै श्री राधे, जै जै श्री हित हरिवंश

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