Thursday, 16 June 2016

ब्रज प्रेम सार लहरी 2

श्री संकेत 2

मृदुहासिनी का गौर तेज गोकुलेश के नेत्रों में मानो विद्युल्लहरी प्रसरित कर गया, नटवत् चक्कर काटने लगे – 

भूख लगी कै प्यास तुहि भैया मुख ते बोलि ।

(ब्र.प्रे.सा.लहरी २२चौ ४२)

सुबाहु – "कन्हैया ! आज बिना ताल-पखावज के तू कैसे नाच रह्यौ है । कहीं तोकू भूख तो नाय लग रही? ”

बिनु ही ताल पखावज नचै तोते कोऊ स्वांग न बचैं ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी१२चौ ४७)

सखा २– "गौचारण के प्रथम दिन ही यह कैसौ कौतुक कर रह्यौ है? ” 

सखा ३– "नन्दगाँव में तो तेरी चोरी के कोलाहल और यहाँ वन में चोरी-बरजोरी यह कैसो स्वांग है ।”

सखा ४– "लाला कन्हैया, बता तो सही तोकूं भयो कहा है? ” 

कृष्ण – "न, न मैं नांय बताऊँगो, यह कहवे योग्य बात नांय है, तू मैया-बाबा कू बता देगो ।”

सखा – "मत बतावै, हमें सब पतौ है ।

रूप स्वादी ! तू जाकूं चाहै वह तो बरसाने चली गई, अब तेरे हाथ कछु नांय लगेगो ।”

रूप सवादी लोचन महा ऐसे हाथ लगैगो कहा ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२चौ ५२)

कृष्ण – "भैया सुबाहू ! वे जहाँ गयीं हैं, वहीं मोकू तू लै चल मेरो हृदय धैर्य धारण करिबे में असमर्थ है ।” 

सुबाहु – "कन्हैया तू ऐसो रूप लट्टू है गयौ है, बे सिर पैर की बात मत करै ।”

प्रथम ही रूप बौंहनी भई । निरखि वन वैभव यह नई ।

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२चौ ५६)

कृष्ण – "आज गौचारण के प्रथम दिन ही शुभ सगुन भयो, मानो सम्पूर्ण वन की सुन्दरता को अपूर्व वैभव या रूप में (श्रीजी के रूप में) दर्शित भयो । यासों पतो लगै है कि हमारों गौचारण अनेक मंगलनि कौ हेतु होयगो । 

भैया ! अब वा रूप सम्पत्ति की धनी, मन्द-हास्य-युत स्वर्ण कमल-मुख वारी के नाम-गाम, ठौर-ठिकाने को पतौ लगा, वाके रूप शर ते मेरो हियो आहत है गयो है ।”

रे भंगरैला ! नन्द के मो सिख सुनतु न काँन ।
बोलत निपट कराहि कैं कहा ह्वाँ वरषे बाँन ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२दोहा.४२)

सखा – "अरे भंगड़ नन्द के ! कहाँ लगौ वह बाण जो तू कराह रह्यौ है ।”

कृष्ण – "भैया ! तू इतनौ कठोर मत बोल, कोई ऐसे देवता कौ नाम बता जाकूं

 पूजवे ते भानु घर में मेरो ब्याह है जाय ।”

(सब सखा सुनकर हँस गये और बोले)

पाँवन सर में न्हाइ कै बन्दनि करि गिरिराज ।
मोहन ह्वै हैं बेगि हीं तो मन वांछित काज ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी.२२चौ.६९)

सखा – "कन्हैया एक ही उपाय है, पावन सरोवर में स्नान कर और गिरिराज बाबा की पूजा कर, बस सब मनोरथ पूर्ण है जायेंगे और देख जाके दृग शर से तू बिंध गयौ है वह वृषभानु नन्दिनी राधा है । बरसानो जिनकी रजधानी है । अच्छो भयौ तू वाके सामने नहीं पड़ौ नहीं तो तेरी प्रतिष्ठा नष्ट है जाती कि देखो वृषभानु दुलारी के दृग शर से नन्द दुलारो छलनी है गयौ ।”

मनसुख – "तू चिंता मत कर कन्हैया, तेरी मैया वाते तेरो ब्याह करावे के लिए गिरिराज पूजा, संकेत देवी और नारायण की आराधना करै है ।” 

मन के मरमी सखा ने कहै कृष्ण सों बैंन ।
तद्दपि फेरि सके न मन रूप उरझि गए नैन ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२दोहा७९)

भाँन कुँवरि हू प्रथम ही देखे नन्द कुमार ।
उदै भयो अनुराग उर पूरवली जु चिन्हार ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२दोहा८०)

बाँनी कहा लग वरनिये गाढ़ प्रेम हिय लाग ।
वृन्दावन हित रूप कह्यौ प्रथम उभै अनुराग ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी२२दोहा८१)

या प्रकार सों चाचा वृन्दावन दास जी ने संकेत में युगल के सनातन प्रेम की प्रथम उदय लीला गाई । मैया यशोदा ने भी जन्मोपरान्त श्रीजी के प्रथम दर्शन संकेत में किये और यशोदा नन्दन ने भी किशोरी जी के प्रथम दर्शन यहीं किये । 

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