Thursday, 16 June 2016

ब्रज प्रेम सार लहरी 1

श्री संकेत

साँझी के लिए कुसुम चयन करने गोपियों सहित श्रीजी एक बार प्रेम सर आयीं – 

"पहुँची प्रेम सरोवर तीर कुसुम बहत पै भवँरनि भीर"

(ब्र.प्रे.सा.लहरी चौ. ९)

उधर नन्द भवन से मैया यशोदा भी संकेत देवी के पूजनार्थ संकेत आयीं, वहीं प्रेम सरोवर पर केलि चतुरा श्रीराधारानी ने सखियों सहित यशोदा मैया को देखा । मैया की भी सहज दृष्टि जब परम कृशोदरी किशोरी पर पड़ी तो मन सहज ही परिचय पूछने को उतावला हो गया । परस्पर परिचय दान हुआ, अनन्तर मैया ने कहा – "राधा ! आज तो संकेत देवी ने पूजन के पूर्व ही पूजन को पूर्ण लाभ प्रदान कर दियौ ।” राधा – "वो कहा मैया? ” 

यशोदा – "मोकू तेरे दर्शन है गये ।” मैया ने संकेत देवी के पूजन का सम्पूर्ण फल श्रीराधा रानी का दर्शन माना और मन ही मन संकेत देवी को प्रणाम कियौ, यह कहते हुए कि संकेत देवी ही सच्ची देवी है, जाने बिना पूजन के मेरी अभिलाषा कू पूर्ण कर दियौ । अपने अंक में लेकर मैया सर्वाभिमता लड़ैती राधा कू प्यार करते चूमवे लगी । मैया को वात्सल्य अविराम उमड़वे लग गयो, शिव विचारन के विशाल सागर में डूब गयी और बोलीं – "राधा ! मैं तेरे जन्म अवसर पर आई ही, वाके बाद भाग्य ते आज मिलनो भयो है । ललिता ! कीर्ति जीजी कू कहियो कि नन्द गाँव वारे तुम्हारे समक्ष तो नहीं हैं पर यशोदा कू जो वचन दियौ वाकू याद अवश्य रखें, वा वचन पालन कौ अवसर भी अब अति शीघ्र आ रह्यौ है और भूल मत जइयो, कीर्ति जी को पाँय लागन (चरण स्पर्श) अवश्य कहियो ।”

नाम हिता तो माइ कौ सुनि अति लड़ि वृषभान ।
कहियो पा लागन जु मम दै के बहु सनमान ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी१२ चौ. ४२)

आज अष्टसखी सेविता किशोरी कू भानु मन्दिर पहुँचते-पहुँचते बहुत अबेर (विलम्ब) है गयी । मैया कीर्ति ने श्रीजी से पूछी – "लाली ! आज कहाँ सुदूर निकल गई जो इतनी अबेर पै आई है ।” राधा – "मैया ! आज सखीन संग साँझी बीनवे प्रेम सरोवर गई ही, तहाँ मैया यशोदा संकेत देवी पुजवे आई ही, वह मिल गई ।” (बहुत प्रसन्न होकर) कीर्ति – "यशोदाजी ने कहा कही ।” राधा  "यह ललिता बतावैगी ।” 

सखी  –

हम बन गई फूलनि तोरन हेत ।
महरि जु आईं पूजिबै देवी वट संकेत ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी१२चौ६९)

"मैया यशोदा जी हम सबसों मिलके बहुत प्रसन्न भईं । राधा सों नन्द गाँव चलवे की कही और हाँ तोकू चरण स्पर्श कही है, साथ में यों भी कही है कि कीर्ति जीजी सों कहियो वे अपनों दियो भयो वचन याद रखें ।”

आई चतुरा नारि इक हम सों गई बतराय ।
भेद भाव उन महरिको सबही दियो जताइ ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी१२चौ ७१)

वचन किये जे परस्पर हम तुम खिले सु चित्त ।
रानी ते सुधि कीजियो हौं सुधि करत जु नित्त ॥

(ब्र.प्रे.सा.लहरी१२चौ ७८)

वचन या प्रकार सों है – एक बार कीर्ति जू और यशोदा जू दोनों गर्भवती हीं । श्री यमुना जी पै दोनों को मिलन भयो । परस्पर प्रगाढ प्रेम तो हो ही, दोनों ने एक दूसरे कू वचन दियौ कि यदि हम दोनों के लाला व लाली होंगे तो उनकी हम सगाई करेंगी । यशोदा – "कीर्ति जी ! यदि आपके पुत्री भयी और हमारे पुत्र तो हम अपने पुत्र को विवाह आपकी कन्या सों ही करेंगी ।” कीर्ति – "यशोदा जी ! यदि हमारे पुत्री भई और आपके पुत्र तो अवश्यमेव हम ऐसो ही करेंगी ।” या वचन कू याद करके श्री कीर्ति जी तो आनंद विह्वल है गयीं । लाली राधा कू सप्रेम भोजन करायो, बढ़िया स्वादिष्ट पदार्थ जिमाये । ब्रज प्रेमानंद सागर के अनुसार भी संकेत वट में ही श्री कृष्ण को श्री राधा रानी के प्रथम दर्शन हुए ।

जय श्री संकेत स्थल
जय जय श्री राधे

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