Monday, 13 June 2016

राधा जन्मोत्सव। भाई जी

राधा जन्मोत्सव

मन्जुस्वभावमधिकल्पलतानिकुन्जं
व्यन्जन्तमद्भुतकृपारसपुन्जमेव
प्रेमामृताम्बुधिमगाधमबाधमेतं
राधाभिधं द्रुतमुपाश्रय साधु चेतः।।
पीतारुणच्छविमनन्ततडिल्लताभां
प्रौढानुरागमदविह्वलचारुमूर्तिम्।
प्रेमास्पदं व्रजमहीपतितन्महिष्यो-
र्गोविन्दवन्मनसि तां निदधामि राधाम्।।
शक्तिमान के साथ शक्ति का नित्य, अभिन्न तथा अभिनाभाव सम्बन्ध रहता है। अतएव भगवान की ह्लादिनी रूपा स्वरूपाशक्ति श्रीराधाजी भगवान में कालकल्पनातीत काल से ही अभिन्न भाव से स्थित हैं और सदा रहेंगी। साथ ही ये पृथक मूर्तरूप से भी नित्य लीलायमान हैं। जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का इस पुण्यभूमि में आविर्भाव होता है तब वे भी लीला के लिये प्रकट हुआ करती हैं।

इस बार भी गत द्वापर के अन्त में गोपराज श्रीवृषभानु और श्रीकीर्तिदा रानी के घर इनका मंगल प्राकट्य हुआ था - भाद्रपद शुक्ल 8 चन्द्रवार को मध्याह्न के समय अनुराधा नक्षत्र में। श्रीवृषभानुकीर्तिदा पूर्वजन्म में राजा सुचन्द्र तथा रानी कलावती के नाम से प्रसिद्ध थे। इन दोनों ने दीर्घकाल तक तप करके ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि ‘द्वापर के अन्त में स्वयं श्रीराधा तुम दोनों की पुत्री होंगी।’ 

श्रीराधाजी का मंगलमय प्राकट्य उनके ननिहाल में कालिन्दीतट पर स्थित रावल-ग्राम में हुआ था। प्राकट्य के समय अकस्मात प्रसूतिगृह में एक ऐसी दिव्य प्रखर ज्योति फैल गयी कि जिसके तेज से अपने-आप ही सबकी आँखें मुँद गयीं।

इसी समय ऐसा भान हुआ मानो देवी कीर्तिदा के प्रसव हुआ है। पर प्रसव में केवल हवा निकली और जब कीर्तिदा तथा समीप में स्थित श्रीगोपांगनाओं के नेत्र खुले, तब उनको दिखायी दिया कि वायु में कम्पन-सा हो रहा है और उसमें सहसा एक परम सुन्दर दिव्य लावण्यमयी बालिका प्रकट हो गयी है। कीर्तिदा ने यही समझा कि इस परम दिव्य ज्योतिर्मयी कन्या का जन्म मेरे ही उदर से हुआ है। उन्होंने मन-ही-मन दो लाख गो-दान का संकल्प किया। अन्तरिक्ष से सुर-समुदाय ने इतने सुगन्धित सुन्दर सुकोमल सुर-सुमनों की वर्षा की कि चारों ओर ढेर-के-ढेर वे पुष्प स्वयं ही सुन्दर ढंग से सुसज्जित हो गये। सब दिशाओं में एक अभूतपूर्व आनन्द की धारा बहने लगी। स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के प्राकट्य के समय जो आनन्द-रस की धारा बही थी, आज उनकी आनन्द-रस-भावमयी इन हृदयेश्वरी के प्राकट्य के समय वही रस मानो समुद्र बनकर उमड़ चला और सभी दिशाएँ उस आनन्द-रस से आप्लावित हो गयीं।
नन्द-यशोदा के घर प्रकट हुए थे जब राधाप्रिय श्याम।
हुई प्रभावित थी तब रस-आनन्द-सुधा-सरिता अभिराम।।
आज श्याम की हृदयवल्लभा प्रकट हुई जब रावल-ग्राम।
उमड़ा चला वह रस सागर बन प्लावितकर सब दिशा ललाम।।
फिर, सभी दिशाएँ जयघ्वनि से गूँज उठी, श्रृषिवर करभाजन, श्रृंगी, गर्ग और मुनि दुर्वासा पहले से ही पधारे हुए थे। उन्होंने बालिका के मंगल ग्रह-नक्षत्रों का शोध किया और कुण्डली बनायी। सम्पूर्ण व्रज-मण्डल में यह शुभ समाचार फैल गया।

महाभाग नन्द-यशोदा सदल-बल उपहार लेकर पधारे। घर-घर बधाइयाँ बँटने लगीं। देवर्षि नारद आये और आनन्दरसमयी श्रीराधिका का दर्शन-स्तवन करके कृतार्थ हो गये। ... भाई जी के वक्तव्य ।
जय जय श्यामाश्याम ।

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