Friday, 17 June 2016

वसन प्रवाह से भावित श्याममसुंन्दर

हमारी प्यारी किशोरी जु खेल खेल में अपने वस्त्रों को हिला दे , या हिल  जावें , आंख मिचौनी के समय छिपि श्री जु द्वारा उष्मा दूर करने आँचल से खेलने से , श्री जी की दिव्य अंग से निकलती सुगन्ध से आकर्षित भ्रमर को हटाने के लिये वसन से खेलने से , श्री  जी  के श्रृंगार के लिये पुष्प सञ्चय करते समय श्री श्यामसुन्दर के मुख चन्द्र पर आये हुये पसीना को देखकर करूणामयी भावना से श्री  जी  वस्त्र हिलाती  है पसीना पोछने हेतु उस  वस्त्र के  हिलने से ,, जो पवन उठती है उसमें दिव्य सुगन्ध के स्पर्श और अपने श्वसन समीर में घुलने से श्यामसुन्दर स्वयं को अति कृतार्थ जान कर भावित रहते है I सत्यजीत तृषित ।

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