Vrindawan prartna 11 स्नान के बाद तुम सजधज कर सखियों के साथ आकर रत्न पलंक पर सुन्दर आसन पे बैठोगी । इसी वक्त वह सखी श्यामला-सुन्दरी प्रवेश करेगी । दूर से ही होठों पर कपडा रखकर वे थोडी थोडी मुस्कुराती हुई आएगी । वह आते ही तुम उसे अपनी बाहों में भर लोगी और फिर उसे अपने आसन पर बायें की तरफ बिठाओगी ।
तुम पूछोगी कि सखी, इतने सवेरे क्यों आई हो ? वह कहेगी – “ तुम्हें सुबह सुबह देखने से मेरा पूरा दिन अच्छा जाता है। जैसे कुछ लोग होते हैं - वे रोज़ ही सवेरे सवेरे स्नान करते हैं । यह उनका नियम होता है । वैसा ही मेरा नियम है कि सुबह होते ही तुम्हारा दर्शन करना । अगर तुम्हारा दर्शन नहीं हुआ तो मुझे बडी बेचैनी होती है । तुम भी तो हंसकर अपने दिल की बात बताती हो, है न ? तुम कहोगी – अच्छा हुआ जो विधाता ने हमें मिला दिया । मेरी भी बडी इच्छा हो रही थी तुमसे मिलने की ।”
और फिर तुम दोनों रस की मूरत बनकर रस कला के बारे में चर्चा करोगी । कृष्णदास कह रहा है कि कब वह दिन आएगा जब मैं उस रस आलाप को सुन पाऊँगा !!
अब श्यामा सखी तुम्हारे मुख चंद्र को देखकर हंसती है और हौले हौले बोलती है – “ मुझे मालूम है कि तुम रात में अमृत की गंगा मे स्नान कर चुकी हो । और इससे तुम पवित्र हो गई हो । तुम्हारा स्नान कैसा रहा उस रस गंगा में, यह तो बताओ ? यह सुनकर मैं भी निर्मल चित्त हो जाऊँ्गी !!” तुम हसकर जवाब दोगी – “सुन सखी, मेरा स्नान तो नहीं हुआ” । वह कहेगी – “तो फिर तुम्हारे हर अंग पर ये निशान कैसे ? और तुम्हारी आँखें गुलाबी कैसी ? ” श्री गुण मंजरी कहती है – “ऐसे रसालाप पे मैं बलिहारी जाऊँ ! कब उसे विस्तारित रूप से मैं वर्णन करूंगी ?”
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