ये रहस्य वृन्दावन वासी ही जानते है की जो सर्वाधार है जगदाधार है सकल लोक चूड़ामणि है उन कृष्ण का भी कोई आधार है और वो है श्री राधाजू जो स्वयं कृष्ण को भी आधार प्रदान करती है l जब श्री कृष्ण की सम्पूर्ण कृपा होती है किसी जिव पर तब वो प्रियाजू की शरण में जाता है और फिर प्रियाजू की किंकरी का भाव उस जिव के ह्रदय में जागृत हो जाता है और जबतक ऐसा भाव ना ए तबतक समझना चाहिए की अभी श्री कृष्ण की सम्पूर्ण कृपा हम पर नही हुई है l ये तो बात हुई कृष्ण की कृपा की पर एक और परम रहस्य ये है की जब प्रियाजू की कृपा होती है तब जिव श्री हरिवंश जू की शरण में आता है (बिना कृपा श्री राधारानी क्यू शरण हित जू की पावे) परम तत्व प्रेम है जो श्यामा और श्याम के रूप में क्रीडा करते है (प्रेम के खिलौना दो खेलत है प्रेम खेल) जैसे सबने सुना है सत्संग में की कृष्ण ही राधा है और राधा ही कृष्ण है तो जब दोनों एक होते है तब कौनसा स्वरुप बनता है । क्या एक होने पर कृष्ण बन जाते है ?? क्या एक होने पर राधा बन जाते है ?? नही ! एक होने पर वो परात्पर तत्व प्रेम बन जाते है lश्री हरिवंश जू के रूप में वो परात्पर प्रेम तत्व अवतरित हुए थे l
ह अक्षर में हरी बसे , र में राधा नाम ।
व् अक्षर वृंदाविपिन , स सहचरी अभिराम llपरम तत्व प्रेम स्वरुप से युगल है (गौर और श्याम)हरिवंश नाम में चार तत्व है पर वस्तुतः चार नही है दो ही है । हरी, राधा, वृन्दावन और सहचरी । इसमें वृन्दावन जो है वो राधाजू का ही प्रत्यक्ष स्वरुप है और ललिता आदि सहचरीया कृष्ण की इच्छा है (कृष्ण की इच्छा रहती है की मैं प्रियाजू की हर प्रकार की सेवा करु तो वो ही इच्छा प्रियाजू की शक्ति पाकर सहचरीयो का स्वरुप धारण कर लेती है ) इस तरह से चार नही अपितु दो ही तत्व है श्यामा और श्याम जो प्रेम के दो स्वरुप है प्रेम के दो खिलौना है l
प्रकट प्रेम को रूप धर श्री हरिवंश उदार l श्री राधावल्लभलाल को प्रकट कियो रस सार l जय जय श्री हरिवंश
Sunday, 10 April 2016
हरिवंश तत्व
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