दिन दुल्हिन दूलहु बलिहारी ।
अधिक फबीं श्री वन की स्वामिनी देखीं न सरि की कोऊ वधू वारी ।१।
अतलस अंगिया चोली राती पैने कुच कंचुकी उकारी ।
सारी सुरंग जरी बुँटे मणिं जडीं अंचल सब कोर किनारी ।२।
भूषण वसन हू शोभा पाई अद्भुत रूप अंग अंग धारी ।
मोतिन मौर माथे कछु टेढ़ी घूँघट अँखिंयाँ चलें कजरारी ।३।
दूल्हा रूप अनूप बन्यौ जामा अचकन मणि जटित किबारी ।
पेचदार पगिया पर सेहरो मोहत मन श्यामा सुकुमारी।४।
श्री ललिता दोऊन कर जोड़त सोहें तैसिय रूप उजियारी ।
प्रथम समागम कौ सुख विलसत प्रेम प्रवीण श्री राधे बिहारी ।५।
सभार-सन्त कृपा से
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