Friday, 22 April 2016

ओह! प्राण प्रिया तुलसीमंजरी

ओह! प्राण प्रिया तुलसीमंजरी

ऐसी कोई परम प्रिया अनंत कोटि सुखानुभूति कराने वाली मेरी स्वामिनी की कोई ऐसी सेवा बताओ

मैं नवमंजरी होने के कारण सारा दिन और रात्रि उन्हें सुख देने वारी सेवा का निरीक्षण ही करती रहती हूँ

एक धृष्टता मेरी माफ़ कीजिए आप सब मंजरीगण कहने की साहस कर रही हूँ

जब आप सब आदरणीय मंजरीगण रात्रि में शयन कक्ष पधारती हो
तब मैं आप सब के कक्ष के बाहर खड़ी होकर आप सबकी जो वार्तालाप चलती है स्वामिनिजी को सेवा करके सुख प्रदान करने की मैं वो चुपके से चोरों की भाँति श्रवण करती हूँ और अगले ही दिन उसे करने की सोचती हूँ

मैं इस सेवा में अभी नयी नवेली हूँ
कृपया करके मुझे स्वामनिजी की सेवा की परिपाटी बतला दीजिए

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