Monday, 25 April 2016

आह्लादिनी श्री राधा

श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा

’कृष्ण के आह्लादे, ताते नाम आह्लादिनी।’

चैतन्यचरितामृत के अनुसार राधा भगवान की आह्लादिनी शक्ति हैं। जिसके स्वरूप, सौंदर्य, सारस्य आदि से श्रीकृष्ण आह्लादित होते हैं और जो श्रीकृष्ण को आह्लादित करती हैं, वह शक्ति ह्लादिनी शक्ति है। उसी शक्ति के द्वारा उस सुख का आस्वाद वे स्वयं करती हैं। श्रीकृष्ण को आह्लादित करके स्वयं आह्लादित होती हैं। श्रीराधा श्रीकृष्ण को तथा भक्तजनों को आह्लादित करने के कारण आह्लादिनी शक्ति कहलाती हैं और सभी शक्तियों से श्रेष्ठ महाशक्ति हैं और महाभावरूपा हैं। इस आह्लादिनी शक्ति की लाखों अनुगामिनी शक्तियां मूर्तिमान होकर हर क्षण सखी, मंजरी, सहचरी और दूती आदि रूपों से श्रीराधाकृष्ण की सेवा किया करती हैं; श्रीराधाकृष्ण को सुख पहुंचाना और उन्हें प्रसन्न करना ही इनका कार्य है। इन्हीं को गोपीजन कहते हैं।

आनंद की अहलादिनी स्यामा अहलादिनी के आनंद स्याम।
सदा सरबदा जुगल एक मन एक जुगल तन बिलसत धाम।।

महारास में प्रकट हुए रसराज श्रीकृष्ण ने तरुणी स्वरूप धारण किया। वे एकाकी रमण नहीं कर सकते, अत: उन्होंने दूसरे की अभिलाषा की। तब दूसरे के अभाव में अपने को ही राधा स्वरूप में प्रकट कर रमण किया। परम दयालु भगवान भक्तवात्सल्यतावश राधा-माधव रूप से दो प्रकार के रूपधारी हुए। अर्थात उस गोपाल-तत्व से दो ज्योति प्रकट हुईं, एक गौरतेज तथा दूसरा श्यामतेज। गौरतेज के बिना श्यामतेज की उपासना करने से मनुष्य पाप का भागी होता है।

गौरतेजो बिना यस्तु श्यामतेज: समर्चयेत्।
जपेद्वा ध्यायते वापि स भवेत् पातकी शिवे।। (सम्मोहनतन्त्र)

नंदबाबा के घर जब पुत्ररूप में आह्लाद (आनन्द) का प्राकट्य हुआ तो आह्लादिनी (आनन्ददायिनी) का प्रकट होना भी निश्चित था। अत: बृषभानुजी के घर आह्लादिनी राधा का जन्म हुआ। आह्लादिनी के बिना आह्लाद आता ही नहीं। इसी से रसिकजन श्रीराधा को आनन्द देने वाली जानते हैं और वे ‘आह्लादिनी’संज्ञा से प्रसिद्ध हुईं।

राधारानी देतीं प्रिय को पल-पल नया-नया आनन्द।
उस आनन्द से शत-शतगुण आनन्द प्राप्त करतीं स्वच्छंद।।

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