Friday, 22 April 2016

आई उपमा और उर

जै जै श्री हित हरिवंश।।

आई उपमा और उर, बस किये मोहन मैन। मुँदे कंज देखत मनों, खुले कमल पिय नैन।।27।।

अति सुंदर अँगिया बनी, सौधे सनी सुरंग। पिय मन अलि तहाँ भृमत रहै, तजत न कबहूँ संग।।28।।

व्याख्या  :: श्री हित ध्रुवदास जी कहते है - मेरे मन में यह दृश्य देख कर एक और उपमा आयी है जिसने मोहन को भी वश में कर लिया है। मानो प्रियतम को मुंदी (बन्द) कमल कलियो को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे प्रिया के कमल नयनो के दर्शन कर रहे हो।।27।।

व्याख्या :: श्री राधा जी की अति ही सुन्दर अंगियाँ बनी है जो कि सोंधी सुंगंध में भीगो के सुरभित कर रँगी हुई है तथा वहाँ पर प्रियतम का भौरा रूपी मन बार-बार भृमर और गुँजार करता हुआ कभी भी संग छोड़ने को तैयार नही है।।28।।

जै जै श्री हित हरिवंश।।

No comments:

Post a Comment