राधे राधे ,,पग डगमग चलत बन विहरत रुचिर कुञ्ज घन खोर |
जै श्री हित हरिवंश लाल ललना मिलि हियौ सिरावत मोर ||
भावार्थ--श्री हित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु कहते हैं कि कलिन्द नंदिनी के सुरम्य तटवर्ती निकुंज भवन से निकल कर बाहर श्री वन की ओर डगमगाते हुए चल पड़ते हैं ,प्रिया-प्रियतम डगमगाते हुए चरणों से श्री वृन्दावन की कुंजो,उपवनों और सघन गलियों में विचरण करने लगते है ,इस प्रकार श्री लाल ललना [युगल किशोर] मिलकर मेरे हृदय को शीतल कर रहे हैं ,शांति और सुख प्रदान कर रहे हैं
,,इस छवि-छटा को देखकर सखियों को परम आनंद प्राप्त होता है ,इस पद में प्रेम का अंतिम सिद्धांत "तत्सुख सुखित्वम"अर्थात "प्रिया-प्रियतम के सुख में सुखी होना " का सजीव और जागृत चित्रण हुआ है ,यही इस विहार की विशेषता है ,,इसका कारण यह है कि समस्त परिकर ने अपना सुख श्री प्रियालाल जी के सुख में मिला दिया है ..[[श्री हित चौरासी जी से उद्धृत ]]..जय श्री राधे
Friday, 22 April 2016
राधे राधे पग डगमत चलत बन
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