Wednesday, 6 April 2016

अति कोमल हरि सात दिवस के

राधे राधे
अति कोमल हरि सात दिवस के

कोमल सुकोमलता की प्रतिमूर्ति हरि अभी केवल सात दिन के हैं, अधर, चरण, हाथ अभी सब लाल लाल हैं। मैया अति सावधानी से लला को उठाती है, नर्म नर्म उबटन, हल्का गर्म स्नान, दुग्धपान कराके अति सुकोमलता से उन्हें उठा कर अति नर्म वस्त्र उन्हें उढा कर पालने में लिटा देती है एवं स्वयं लेटी-लेटी हल्की हल्की पालने की डोरी खींच कर अपने लला को मृदुल भाव से झुलाने लगती है।

श्यामसुन्दर की अरूणिम छटा से मैया मुग्ध व निहाल हो रही है। मंत्रमुग्ध सी मैया हलके हलके पालना झुलाने के साथ साथ अति मधुर स्वर में कुछ गा भी रही है-
   "मेरे लाल! पालना झूलो! अपने अप्रतिम सौंदर्य से पालने की शोभा बढ़ाओ।"
    "बृजराज ने इस पालने का निर्माण विशेष विधि से केवल तुम्हारे लिये ही करवाया है- "गढि गुढि ल्याऔ बढ़ई "

अनोखी सजावट करवाई है बृजराज जी ने इस पालने में, सोने के स्तम्भ,सोने की धरन और मरूणांडडे लगवा कर उनमें हीरे,मोती,माणिक्य जड़वाये हैं। पालना नवरत्नों से सुसज्जित है फिरोजा और मोतियों की झालरे एवं भिन्न भिन्न प्रकार के खिलौने भी पालने में लटक रहे हैं।

    "रत्नजडित वर पालनौ रेशम लागी डोर"

स्वयं विश्वकर्मा ने बढ़ई रूप धारण करके इस पालने का निर्माण मेरे लाल के लिये किया है।

"इक लाख माँगे बढई"   बढ़ई ने पालना गढ़ने के एक लाख माँगे।
"दुई लाख नंद ज़ू देहि"  बृजराज जी ने दो लाख स्वर्ण मुद्रायें दी उपहारस्वरूप हर्षित होकर।

"है वारि तव इंदु-वदन पर"  मैया  अपने लला के चंद्र मुख पर बलि बलि जाता रही है, आनन्दातिरेक से सरोबोर है। माता को भावातिरेक में मग्न देख कर सात दिन के नन्हें प्रभु भी बार बार उत्साहित होकर अपनी भुजायें माता की ओर फैलाते हैं-
  "उमंगि उमंगि प्रभु भुजा पसारत"

मैया के दृष्टिकोण से उनके पूर्वजनित पुण्य कर्म फलीभूत हो गये हैं- " पूरन भई पुरातन करनी"
साक्षात परमब्रह्म पालने में लेटे हैं और मैया बार बार विधिना को मना रही है- "पालागौ विधि ताहि बकी ज्यौं,तू तिहि तुरत बिगोई"

"मेरे लाल की रक्षा करना हे देव!
मेरा लाल द्वितीया के चंद्रमा की शीघ्र से शीघ्र बड़ा हो और लला को प्रतिदिन निरख निरख कर मेरे नेत्रों का सुख द्विगुणित हो।

मेरा लला कभी पालने में झुले,कभी बृजराज जी का गोद में। मैया बार बार बलिदारी जा रही है और तुरंत निकला अलौना माखन तनिक सा मीठा मिला कर  अपने लला को चटा रही है।

बृज के नर-नारी मुग्ध हो होकर लला को आशीर्वाद दे रहे हैं।
श्री नंदनंदन को पालने में झूलता देख देवता,मुनिगण आनन्द से प्रफुल्लित हो रहे हैं, आकाश से हर्षित होकर पुष्प वर्षा कर रहे हैं। पूरा आकाश गुंजायमान हो रहा है-
  "देखत देत मुनि कौतुक फूले,झूलत देखि नंद कुमार"
  हरषत सूर सुमन बरसत नभ, धुनि छाई जय जय कार"
अद्भुत चित्रांकन है महाकवि सूर दास जी की  लेखनी द्वारा।
( डॉ० मँजु गुप्ता )

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