अपने रस की उपासना में सावधान रहियै । भक्तनि के अपराधनि सौं डरपत रहियै । छिन-छिन भजन ही संभारयौ करै , जैसे पुतरीन कौं पलकैं ।
पलकनि के जैसें अधिक , पुतरिनु सौं अति प्यार ।
ऐसैं लाडिली-लाल के , छिन-छिन चरन संभार ।
रसोपासना में सावधानी यह है कि सदैव भक्तों के अपराधों से बचता रहे एवं परीक्षण अपने रसमय भजन की ऐसी सम्भाल रखे, जैसे नेत्र की पुतलियों की रक्षा पलकें किया करती है ।
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