श्लोक 13
हे वृन्दावनेश्वरी! रसिकराज श्रीकृष्ण प्रेमामृत मकरंद रस प्रवाह से पूर्ण तुम्हारे जिन चरणकमलों को अपने ह्रदय से लगाकर तीव्र प्रेम ज्वाला दूर करते है; उन्हीं परम सुशीतल श्रीचरण कमलों का मैं आश्रय लेता हूँ।।
श्लोक 14
जिस स्थान की लतामंजरियां श्रीराधा के करकमल युगल द्वारा स्पर्श की गयी है जहाँ श्रीराधा के पदचिन्हों से सुशोभित मधुरस्थली विराजित है। जिस स्थान के विहग श्रीराधा के यशोगान से मुखरित है ; श्रीराधा के उसी विहार- विपिन में मेरा मन रमन करें।।
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