नारायण समान लाल है गर्गाचार्य जी के इस भाव पर नन्द बाबा इसे सन्त हृदय की उपमा ही मानते है । नारायण तो मेरे इष्टदेव है । लाल कहाँ नारायण सम ...... गर्गाचार्य जी के भाव है लाला के प्रति । परन्तु ब्रह्मर्षि असत्य सम्भाषण करते भी नही ।
सनातन गोस्वामी कहते है कि नारायण के समान श्री कृष्ण है । ऐसा कहा जाये तो नारायण यहाँ श्रेष्ट रूप में माने गए । परन्तु ब्रज रसिक कहते है श्री कृष्ण जैसे नारायण है । नारायण के समान कृष्ण है इसका अर्थ हुआ नारायण वरिष्ठ है ।
वैसे तो भेद है ही नहीँ । दोनों एक ही तो है । परन्तु ब्रज रसिक कैसे बाहर देख सकते है । उनका मधुर आग्रह , नारायण में 60 , बिहारी जु में 64 गुण बताये गए । वो गुण है 1 रूप माधुरी । 2 लीलामाधुरी । 3 वेणुमाधुरी । 4 प्रियामाधुरी । यें गुण नारायण में नहीँ ।
ऐश्वर्य पूर्ण है परन्तु रसिक का सम्बन्ध माधुर्य से है । वो तो दर्शन, यजन, अर्चन से पूर्णतः अतृप्त है । जब वहीँ हरी यहाँ वरोंदावन में चोरियां करें , नाना खेल खेलने लगे और न ही स्वयं खेले अपितु सम्पूर्ण ब्रज को खिलाने लगे । ब्रज रज को मुख में भर लें । गैया का पयोधर से ही दूध पी लें और पिलावे । देने पर नहीँ , चोर कर दही माखन के चटकारे स्वयं लगाये और सखाओं को लगावे । सखाओं संग बहुत खेलें और हार कर दण्ड भी ले लेवे । रूप सलोना देख श्याम का सुध मेरी ही क्यों ? सबन की ही खो जावें । देखन भर की बात और कौन कमली न हो । घर-ससुराल , संसार को छोड़ने के , वैराग , रस , आनन्द , रस की किसी क्लास की जरूरत ही नहीँ । बस देखने भर की बात है । उन आंखियो की मस्ती के अफ़साने में जीने के लिए बस उन दो तिरछी कटारो में सब कुछ छिद ही जाने है । यहां वो संग है , खेलते है , लाड लड़ाते है , प्रेम करते है । और यहां उनका पीछे नहीँ वो ही रसीलें ब्रजवासियों के पीछे-पीछे घूमते है । तृषित
Tuesday, 1 December 2015
नारायण और कान्हा । माधुर्य प्रधान
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