Sunday, 13 December 2015

रास की रात्रि भी अप्राकृत है

रास की रात्रि भी अप्राकृत है

रास में चार प्रमुख बाते है - नायक कैसा हो? नायिका कैसी हो? स्थान कैसा हो? और समय कैसा हो ?
नायक - श्रीकृष्ण है. नायिका - श्री प्रियाजी है. स्थान - श्रीवृंदावन है. और समय - शरद पूर्णिमा की रात है.

भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्लामल्लिका .
वीक्ष्य रन्तुं मश्रच्क्रे योगमायामुपाश्रित: ..

अर्थात -  शरद ऋतु थी उसके कारण बेला चमेली आदि सुगन्धित पुष्प खिलकर महँ-महँक रहे थे भगवान ने चीर हरण के समय गोपियों को जिन रात्रियो का संकेत किया था, वे सब की सब पुंजीभूत होकर एक ही रात्रि के रूप में उल्लसित हो रही थी.

भगवान ने उन्हें देखा, देखकर दिव्य बनाया, गोपियां तो चाहती ही थी अब भगवान ने भी अपनी अचिन्त्य महाशक्ति योगमाया के सहारे उन्हें निमित्त बनाकर रसमयी रास क्रीडा करने का संकल्प किया.अमना होने पर भी उन्होंने अपने प्रेमियों की इच्छा पूर्ण करने के लिए मन स्वीकार किया.

ता रात्री: - यहाँ रात्रियो के समूह के बारे में कहा गया है.किसी एक रात्रि की बात नहीं है. अर्थात जब गोपियों ने कात्यायनी माता का पूजन किया, उन साधन सिद्धा गोपियों के लिए, नित्य सिद्धा गोपियों के लिए, या जहाँ श्री प्रिया जी के साथ अष्ट सखियों का प्रवेश हो सकता है वे वाली रात्रि, केवल राधारानी जी के साथ बितायी निभृत निकुंज वाली रात्रि, अलग-अलग ऋतुओ की, अलग-अलग सारी रात्रियो के किये नृत्य को एक साथ कहने का अभिप्राय - ता रात्री: से है.  

जहाँ समय का भी प्रवेश नहीं
रास की इस रात्री में "समय" का भी प्रवेश नहीं है, क्योकि रास में जहाँ सभी चीजे अप्राकृत है वहाँ रात्री प्राकृत कैसे हो सकती है? ये रात्री भी अप्राकृत है दिव्य है,गोलोक से आई है. यहाँ ब्रहमा जी की रात्री से तुलना की गई है क्योकि ब्रह्मा जी की रात्री सबसे बड़ी होती है इससे ऊपर गणना नहीं की जा सकती. गणना करने के निमित्त ब्रह्मा जी की एक रात्री को उदहरण स्वरूप लिया है.

हमारा एक वर्ष अर्थात 365 दिन = देवताओ का 1 वर्ष.

देवताओ के बारह हजार वर्षों  (मनुष्य के तैतालीस लाख बीस हजार वर्ष) कि एक "चौकड़ी" होती है.

ऐसी चौकड़ी जब बीत जाती है = तब 1 "मन्वन्तर" होता है.
ऐसे 14 मन्वंतर बीत जाते है = तब "ब्रह्मा जी का 1 दिन" और उतनी की ही 1 रात होती है.

शरदोत्फुल्लामल्लिका -  वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत ये छै ऋतुएँ होती है इससे सबसे बड़ी और बूढी ऋतु शरद को कहा गया है. जैसे घर में किसी बड़े बूढ़े का नाम लेने से सभी घर वालो का नाम सम्मिलित हो जाता है वैसे ही शरद ऋतु का नाम लेने से सभी का समावेश को गया. श्री वृंदावन में प्रकट अप्रकट दोनों में रास नित्य होता है. प्रकट में ग्रीष्म, बसंत, शरद इन तीन ऋतुओ में होता है और अप्रकट में सारी ऋतुओ में नित्य होता रहता है.

बसंत रास में कृष्ण रोते है गोपियाँ और राधा रानी जी नहीं रोती, रास में सबको अपना ही जोड़ा दिखायी देता है पर जब राधा जी ध्यान से देखती है , सबके साथ है तो वे समभाव होने से मान करके चलि जाती है  और रास रुक जाता है क्योकि रस राधा रानी जी की उपस्थिति में ही विकसित होता है.

प्रिये चारुशीले
मुञ्च मयि मानमनिदानं
सपदि मदनानलो दहति मम मानसं
                                          देहि मुखकमलमधुपानम् ॥ १ ॥ (गीत गोविंद- दशम सर्ग )

अर्थात -  हे प्रिय! आप यदि कुछ भी कहती है तो आपकी दन्तकांति मेरे भय रूपी घने अन्धकार को शमन कर देती है और आपका मुखरूपी चंद्रमा आपके फडकते हुए अधरों की सुधा पीने के लिए मेरे नयन रूपी चकोरो को ललचाता है. हे प्रियचारु शीले! मेरे ऊपर कृपा करके अकारण मान का परित्याग कीजिये और अपने मुख रूपी कमल का मधुपान कराईये.

मल्लिका के पुष्प शरद ऋतु में नहीं बसंत में खिलते है , पर रास की इस दिव्य अप्राकृत रात्रि में मल्लिका के पुष्प खिले हुए है. श्री प्रिया जी श्री कृष्ण जी से १ वर्ष बड़ी है और प्रिया जी ने जन्म से ही आँखे नहीं खोली थी. जब कृष्ण अपनी मईया यशोदा जी के साथ श्री राधा जी के बरसाने गए.

तब श्री राधा जी की मईया कीर्ति रानी ने राधा जी के बालो में मल्लिका के पुष्प गुथे दिए थे, जब श्री कृष्ण ने राधा रानी जी को देखा और उनके बालो में मल्लिका के पुष्प देखे तो वे बड़े प्रसन्न हुए उअर तभी से उन्हें मल्लिका के पुष्प अति प्रिय हो गए. इसलिए भी शरद ऋतु होने पर भी मल्लिका के पुष्प खिले हुए है.

रास में पुष्प लता पता भी अप्राकृत है - रास की रात्रि में जितने भी पुष्प खिले है यहाँ तक की घास लता पता सभी अप्राकृत है, राधा रानी जी ने अपने हाथो से लगाये है जब श्री कृष्ण वंशी नाद श्री प्रिया जी के कर्ण से होता हुआ, ह्रदय तक पहुँचता है, तब उनके महाभाव अश्रु रूप में निपतित होने लगते है.

और जैसे कुए मे से जल निकालते समय कुछ जल झलक जाता है वैसे ही महाभाव में जब वे डूबी रहती है उनके आसुओ से आँखे लबालब भरी रहती है तब कुछ अश्रु झलक जाते है और उन अश्रुओ से सिंचित ये रास के वृक्ष लता पता है. श्री प्रिया जी ने एक-एक लता पत्र को अपने हाथो ले लगाकर उस महाभाव से सिचा है . तृषित । श्यामाश्याम ।
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