Tuesday, 15 December 2015

विषय में लगी हुई बुद्धि ठाकुर जी में लग गई

विषय में लगी हुई बुद्धि ठाकुर जी में लग गई

शुकदेव जी कहते है -रास में दो प्रकार की गोपियाँ है - साधन सिद्धा और नित्य सिद्धा. भगवान की वंशी की ध्वनि सुनकर जो गोपियाँ भागी है वे "श्रुतिरूपा गोपियाँ" है,अर्थात साधन सिद्धा गोपियाँ है. 

"दुहन्त्योsभिययु: काश्रचिद दोहं हित्वा समुत्सुका
पयोsधिश्रित्य सयावमनुद्वास्यपारा ययु: "(5)
अर्थात - वंशी ध्वनि सुनकर जो गोपियाँ दूध दुह रही थी वे अत्यंत उत्सुकता वश दूध दुहना छोड़कर चल पड़ी जो चूल्हे पर से दूध औट रही थी,वे उफनता दूध छोड़कर और जो लपसी पका रही थी वे पकी हुई लपसी बिना उतारे ही ज्यो की त्यों छोड़कर चल दी.

इस श्लोक में गोपियाँ तीन काम कर रही है "पहला" - दूध दोह रही है, "दूसरा" दूध औट रही है, और "तीसरा" दूध पका रही है.
जब कोई विद्वान पाक में व्यस्त होता है श्रुति के बंधन में उपस्थित होकर आत्म चिंतन का पाक करता है व्याख्या का निर्माण करता है, अर्थात 1.गुरु चरणों में बैठकर शास्त्र रूपी गौ से ज्ञान रूपी दूध दुह रहा हो, 2. उस ज्ञानरूपी दुध का आत्म साध करता है, और 3. पात्रो के बीच में बैठकर अनुभव की अग्नि में पकाता है.

तभी ठाकुर जी की वंशी रूपी दुति आ जाती है, तब गोपी चाहे शास्त्र रूपी गाय से ज्ञान रूपी दूध निकाल रही हो, चाहे आत्म साध कर रही हो, चाहे उसे अनुभव की अग्नि में पका रही हो. सभी को फेककर दौड जाती है. क्योकि इन सबको करने का उद्देश्य तो ठाकुर की प्राप्ति है और जब ठाकुर जी बुला रहे हो तब इन सब की क्या आवश्यकता है?

पहले दूध अर्थात विषय में बुद्धि थी अब ठाकुर में लग गई.अर्थात जब ये वंशी सुनाई दे जाए, तो संस्कार को मत देखना, विचार न करना, सोचना मत, बस गोपी की तरह फेककर चले जाना.

वंशी रूपी दुति ने कहा- जल्दी चल ठाकुर जी बुला रहे है.जैसे ही गोपी दूध फेककर जाने लगी तो वंशी बोली - अरी गोपी ! फेकने की क्या जरूरत थी?

इस पर गोपी बोली - निगोडी तोहे का पता! विरह किसे कहते है? तू तो ठाकुर से सदा चिपकी रहती है,न नगर चौराहा देखती है ना लोगो को गिनती है.इतना कहकर गोपी भागी. तृषित. श्यामाश्याम

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