श्री कृष्ण रास मंडल में आई गोपियों से कह रहे है -
"राजन्येषा घोररूपा घोरसत्वनिषेविता
प्रतियात व्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभि:सुमध्यमा:"(19)
अर्थात - सुंदरी गोपियों रात का समय है यह स्वयं ही बड़ा भयावना होता है और इससमे बड़े बड़े भयावने जीव जंतु इधर उधर घूमते रहते है.अतः तुम सब तुरंत व्रज में लौट जाओ रात के समय घोर जंगल में स्त्रियों को नहीं रुकना चाहिये. यहाँ फिर श्री कृष्ण दोनों पक्षों में बोल रहे है
विप्रिय पक्ष में कह रहे है - तुम स्त्रियों का अकेले घूमना अच्छा नहीं है.यहाँ सारी तैयारी तो ठाकुर जी ने ही की है. शरद पूर्णिमा की रात, चंद्रमा,सभी चीजे गोपियों ने कुछ नहीं किया तभी तो शुकदेव जी ने कहा है - कि गोपियाँ तो वंशी सुनकर जैसी थी वैसे ही दौड पड़ी, अस्त व्यस्त ही भागी, उन्होंने तैयारी नही की. अब उसी सुंदर रात्रि को घोर कह रहे है.
प्रिय पक्ष में कह रहे है - तुम क्यों डर रही हो? ये ही तो उचित समय है इसी समय तो मेरी प्रिया होने का उचित समय है. कैसा सुंदर चंद्रमा है कैसी सुन्दर रात्रि है. शरद ऋतु आ गई. सब गोपियों के अतःकरण में विराजमान श्री प्रिया जी से कह रहे है अब आओ ना और ऊपर से गोपियों से कह रहे है क्यों आ गई हो?
"मातर: पितर: पुत्रा भ्रातर: पतयश्रच व:
विचिन्वन्तिहपश्यन्तो मा कृढवं बन्धुसाध्वसम्"(20)
अर्थात - तुम्हे ना देखकर तुम्हारे माँ, बाप, पति, पुत्र और भाई, बन्धु ढूंढ रहे होगे. उन्हें भय में ना डालो.
विप्रिय पक्ष - माता, पिता, भाई, बन्धु, सबको छोड़कर क्यों आ गई.
प्रिय पक्ष - ये माता, पिता, भाई, बन्धु,पुत्र, सब व्यर्थ के सम्बन्ध है, ये सब बाट निहार रहे है, तुम इनकी बाते सुनकर क्यों रुक गई. मै तुम्हारा प्रियतम तुम्हारी बाट कब से जुह रहा हूँ, उन्हें छोड़कर मुझे देखो,भय मत करो. तृषित । श्यामाश्याम
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