जब चंद्रमा हुआ पानी-पानी और बन गया चन्द्रसरोवर
जब गोपियाँ और राधारानी जी रास मंडल में आई तो वहाँ हर चीज लता,पता ,गोपियाँ ,रास मंडल, यमुना जी सब अप्राकृत थी,जब सारी चीजे अप्राकृत थी तो चन्द्रमा कैसे प्राकृत रहता,और फिर रास में तो भगवान कृष्ण के अलावा किसी और पुरुष का प्रवेश भी नहीं हो सकता था,जब स्वयं महादेव को गोपी बनना पड़ा तब चन्द्रमा की क्या विसात?
"द्रष्टा कुमद्वंतमखण्डमण्डलं,रमाननाभं नवकुकुमारूणम
वनं च तत्कोमलगोभिरंजितं, जगौ कलं वामद्रशा मनोहरम"
अर्थात - उस दिन चन्द्रदेव का मण्डल अखडं था, पूर्णिमा की रात्रि थी, वे नूतन केशर के समान लाल-लाल हो रहे थे. कुछ संकोच मिश्रित अभिलाषा युक्त जान पड़ते थे, उनका मुखमण्डल लक्ष्मीजी के समान मालूम हो रहा था, उनकी कोमल किरणों के साथ सारा वन अनुराग के रंग में रँग गया था.वन के कोने-कोने में उन्होंने अपनी चाँदनी के द्वारा अमृत समुद्र उड़ेल दिया था.
रास का चंद्रमा भी राधारानी जी के "नखमणि चन्द्र" से प्रकट हुआ,जब रासमण्डल में राधारानी जी आई तो उस समय श्रृंगार नहीं किया है,बिना श्रृंगार के आई है,जब चंद्रमा ने उनके रूप माधुर्य को देखा तो सोचने लगा जब बिना श्रृंगार के इनकी रूप माधुरी ऐसी है तो श्रृंगार के बाद क्या होगा ? फिर हम तो किसी काम के ही नहीं है.चंद्रमा ने पतली गली से निकल जाना ही उचित समझा, उनके रूप को देखकर चन्द्रमा पानी-पानी हो गया और उससे "चन्द्रसरोवर" बन गया.
रास के पहले राधारानी जी ने स्नान किया है फिर राधारानी जी की अंग कान्ति लेकर एक सखी चंद्रमा हो गई, इस तरह उस दिव्य रास में चन्द्रमा भी सखी ही है,जिसमे बाह विधि-निषेध नहीं है. न घटेगा न बढ़ेगा, बाह चंद्रमा पर ग्रहण आता है यहाँ तो ग्रहण है ही नहीं. श्यामाश्याम
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