प्रभु की वेणु ।
अर्द्ध अंगुली व्यवधान से उर्द्ध मान में तारा आदि स्वर के लिये आठ छिद्रयुक्त और उन सभी छिद्रों में पहले छिद्र से डेढ़ अंगुली दूर एक अंगुली परिमित मुख का छिद्र होता है । आगे का भाग चार अँगुली और पीछे का भाग तीन अँगुली -कुल नौ छिद्रयुक्त सतरह अँगुली परिमित बाँस ही बंसी के नाम से जाना जाता है । बंसी का मुख-छिद्र तार नामक अंतिम छिद्र से दस अँगुली परिमित दूर होने पर उस बंसी का नाम महानन्दा होता है । कोई कोई इस बंसी को सम्मोहिनी बंसी कहते है । यदि बंसी के तार छिद्र और मुखरन्ध्र बारह अँगुली दूर रहते है , तो उसे आकर्षिणी और चौदह अँगुली दूर होने पर उसे आनन्दिनी कहते है । आनन्दिनी का दूसरा नाम वंशुलि भी है । यह कृष्ण के सखाओं को अति प्रिय है ।
यथाक्रम से श्री कृष्ण की यें तीन प्रकार की बंसियाँ है - मणिमयी , हेममयी और वैष्णवी अर्थात् सरल बांस से निर्मित । इनमें मणिमयी बंसी का नाम सम्मोहिनी , स्वर्णमयी (हेममयी) बंसी का नाम आकर्षिणी तथा बाँस निर्मित वैष्णवी बंसी का नाम आनन्दिनी है । सत्यजीत "तृषित" । ।
No comments:
Post a Comment