Monday, 21 December 2015

जहाँ काम की भी दाल न गली

जहाँ काम की भी दाल न गली ।
भगवान कहते है - जो अनन्य भाव से भगवान के चरण कमलों में समर्पित हो जाता है तो हम उसके हाथ का खिलौना बन जाते है.इसलिए रासलीला में गोपी जो-जो करने को कहती ठाकुर जी वही करते.कोई गोपी कहती -प्यारे! बड़ी प्यास लगी है,ठाकुर जी अंजुली में जलभर लाते और उस गोपी को पिलाते.

किसी गोपी की चोटी खुल जाती ठाकुर जी बांधने लगते.कोई गोपी कहती प्यारे! रास करते करते गर्मी लग रही है तो ठाकुर जी झट अपने पीताम्बर से उसको पंखा झलने लगते.

रास के समय ही श्री नारद जी की प्रेरणा से काम व्रज में आया, उसी समय त्रिभंगललित प्रभु ने वासूरी बजाने के लिए उठाई अभी बजायी नहीं, केवल टेढ़ी चितवन से काम की ओर देखा, तो देखने मात्र से वह बेहोश हो गया,अभी तो राधा रानी और गोपियाँ आई ही नहीं है, शायद उन्हें देखकर काम तो प्राण ही छोड़ देता, भगवान ने उसे उठाकर व्रज से बाहर फेक दिया, तब वह गोपियों के पास गया,पर वहाँ भी उसकी दाल नहीं गली.

क्योकि गोपियों के चित्त में कृष्ण बसे हुए है,और जहाँ राम है वहाँ काम का, क्या काम है? जब चित्त कृष्ण के पास चला गया, तब काम फिर गोपियों के विरह की आग में जलकर भस्म हो गया.पर अभी गोपियों की देह शेष थी? कौन सी देह ?दिव्य देह सो काम उनकी कंचन देह के अंग-अंग में आकर बैठ गया.

जब गोपियाँ रास मंडल में आई तब भगवान गोपियों के साथ क्रीडा करते हुए,उनके अंगों का स्पर्श कर रहे है, मानो एक-एक अंग में से काम को निकाल-निकालकर परास्त करते जा रहे है.

"बाहुप्रसारपरिरंभकरालकोरु, नीविस्तनालभननर्मनखाग्रपतै,
क्ष्वेल्यावलोकहसितैर्वजसुंदरीणा, मुत्त्भयन् रतिपति रमयाचकार "

अर्थात - हाथ फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना, उनकी चोटी, नीवी, आदि का स्पर्श करना, विनोद करना, नखक्षत करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना, और मुस्काना. इन क्रियायो के द्वारा गोपियों के साथ वे भगवान श्री कृष्ण क्रीडा द्वारा आनंदित  करने लगे.अंत में काम परास्त होकर, लजाकर, भगवान के पुत्र होने का वरदान लेकर व्रज से गया है. सत्यजीत तृषित । श्यामाश्याम

1 comment:

  1. Jai Shri Krishna
    https://hindugyani.blogspot.in/2016/10/blog-post_42.html

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