मैल क्या है मन में मैल नहीं रखना चाहिए.ये मैल क्या है ? किसी से प्रेम करते है और किसी से द्वेष करते है.किसी की तरफ प्रेम से देखते है और किसी की तरफ द्वेष से.बस ये ही मैल है हमारे अंदर द्वंद का जो आज तक मिटा नहीं मनुष्य मर जाता है, चिता पर जल जाता है.पर ये साथ ले कर ही मरता है.जहाँ फिर जन्म लेता है इसे फिर लेकर जन्मता है.
गोपिया कहती है कि बड़े बड़े योगी तपस्या करते जिस द्वंद को नहीं मिटा सके उसे जिस ने भी श्री कृष्ण चरित्र जरा सा भी सुन लिया तो उसका द्वंद मिट जाता है. उसका संसार मिट जाता है .जिस का द्वंद मिट गया तो उस का संसार मिट गया क्योंकि फिर संसार से प्रेम ही नहीं रहा.
निष्ठुर से प्रीति मत करना
गोपिया कहती है कि इस निष्ठुर से प्रेम करने बालो की गिनती नहीं है,सब इस से प्रेम करते है परन्तु ये निष्ठुर है, बड़ा निष्ठुर है.इस निष्ठुर से प्रीति मत करना.ये बड़ा बेदर्दी है.
गोपी कहती है कि पहले तो इस ने मेरे चित हर अब ये छुप गया है.क्या ऐसे है प्रेम की रीति कि पहले तो चित चुराता है और अब तडफाता है.दूसरी गोपी बोली कि ये ही उसके प्रेम की रीती है.पहले ये घायल करता है फिर पीछे मिलता है. ये प्रेम की भाषा है.प्रेम में ऐसे ही दर्द मिलता है.प्रेम में ऐसे ही शव्द निकलते है.
कृष्ण विरह को विष्मृत कहते है क्योकि इस पीड़ा में, इस दर्द में, इस तडफन, में जो आनन्द हैउसके आगे करोड़ो ब्रह्मानंद भी तुच्छ है.इसको पीड़ा नहीं कहते.श्री कृष्ण विरह को विष्मृत कहते है जो लगता ऊपर से विष है, पर है अमृत.इसकी मिठास इतनी मीठी होती है कि वो ही जान सकते है जिन्होंने श्री कृष्ण से प्रेम किया है.
गोपिया ठीक कह रही है गोस्वामी जी आगे कहते है कि गोपिया ठीक कह रही है( गोपियों का साथ देने के लिए नहीं बोला बल्कि कृष्ण का स्वरूप बताने के लिए बोले ) कि देखो ये धूर्त नहीं है तो क्या है ? रात का समय है.वृन्दावन की चारो ओर जंगल है. यहाँ बड़े बड़े जीव घूम रहे है.पर ऐसे में रात्रि में दिन होता तो ओर बात थी,रात्रि में बंसी बजाई,निर्जन में जाकर के बंसी बजाई जहाँ पर पहुंचना कठिन है वहां पर जाकर बंसी बजाई.जहाँ पर कोई नहीं है वहन पर जाकर बंसी बजाई कि तुमको हमारे पास यहाँ पर आना पड़ेगा. इसीलिए तो जिस-जिस ने बंसी सुनी वो सब वहा गई.उन ने ऐसी बंसी बजाई. जिसको सुन कर कोई रह ही नहीं सकती.
क्यों जाना पड़ेगा ऐसे बंसी को सुनने के बाद कोई गोपी घर में रह ही नहीं सकती, उसे जाना ही पड़ेगा.क्यों जाना पड़ेगा ?
वंसी कोई साधारण गीत तो था नहीं.ये उध गीत था.उध गीत क्या है ? बोले ऐसा गीत जिसको शिव, व्रह्मा, सरस्वती आदि भी नहीं समझ सके पर ये गीत हरेक गोपी को खीच कर ले गया.
संसार में ऐसा कोई गीत नहीं है.ये सब गीत संगीत से ऊपर चला गया .जैसे संसार में लिखा होता है कि कोंन गायेगा,कोंन तबला बजाएगा, कोंन सा राग होगा,जिस से पता चलता है कि क्या होगा .पर इस वंसी के गीत को सब देखते रह गये कोई भी समझ नहीं पाया.इसको उध गीत कहते है.
Thursday, 3 December 2015
वेणु नाद और जीव का मैल
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