जिसने परमात्मा के लिए सर्वस्व त्यागा वही महाभाग है
शरद पूर्णिमा की रात में जब भगवान श्री कृष्ण के वंशी की ध्वनि सुनकर गोपियाँ उस रास लीला की स्थली पर पहुँची,यहाँ एक बात जाननी जरुरी है,कि वंशी की आवाज सुनकर वन के पशु, पक्षी,वन्य जीव वृंदावन के अन्य गोप ग्वाले नहीं आये थे,क्यों ?
क्योकि उन्हें वंशी सुनाई ही नहीं दी.ये वंशी साक्षात् भगवान उस परम शक्ति परमात्मा का आवाहन है,और भगवान ने वंशी पर जिस जिसका आवाहन किया वही उस रास लीला स्थली पर पहुँच गया.इसलिए केवल गोपियाँ ही रास लीला में पहुँची.
"स्वागतं वो महाभागा:प्रियं कि करवाणि व:,व्रज्स्यानामयं कच्चिद ब्रूतागमन करणम्"
अर्थात - भगवान श्री कृष्ण कहते है -हे महाभाग्य्वती गोपियों तुम्हारा स्वागत है बतलाओ तुम्हे प्रसन्न करने के लिए मै कौन-सा काम करूँ ?व्रज में तो सब कुशल मंगल है न ?कहो इस समय यहाँ आने की क्या आवश्यकता पड़ गई ?
यहाँ "महाभाग" शब्द आया है, भगवान गोपियों के लिए महाभाग कह रहे है. महाभाग हर किसी के लिए नहीं आता,दो जगह ये शब्द भगवान ने कहा है पहला "गोपियों" के लिए दूसरा राजा "अमरीश" के लिए, वास्तब में महाभाग कौन है?
महाभाग वह है जो सारे जगत के संबंधो को तृण की भांति छोड़कर कृष्ण के पास आ गया वो महाभाग है.और भगवान यहाँ गोपियों का स्वागत कर रहे है,"स्वागतं वो महाभागा"जो भगवत सम्बन्ध को द्रढता से जोड़ लेता है उसका स्वागत भी भगवान करते है.
इसी तरह राजा अमरीश जी थे,जो एक राजा थे, परन्तु राज-काज, घर-गृहस्थी से उनका कोई लेना-देना नहीं था, बस दिन-रात अपने ठाकुर जी की भक्ति में लगे रहते थे, जगत के सारे संबंधो को तृण की भांति छोड़कर भगवान के लगे हुए थे. उनकी ऐसी निष्ठा थी,कि भगवान को भी अपना सुदर्शन चक्र उनकी और उनके नगर की सुरक्षा के लिए हमेशा दिन-रात २४ घंटे लगाना पड़ा था. इसीलिए उन्हें महाभाग कहा गया.
यहाँ एक बात और ध्यान देने की है,गोपियाँ हो या राजा अमरीश जी हो दोनों में से कोई भी संसार से भागा नहीं है,संसार में ही है अर्थात घर गृहस्थी,सम्बन्धी, स्वजन सभी के साथ है,किसी से दूर नहीं है,पर बाहर से सभी के साथ है परन्तु अन्दर कोई नहीं है,अंदर तो केवल एक ठाकुर जी ही बैठे है.ऐसा सम्बन्ध बने तभी बात बनती है. सत्यजीत तृषित । श्यामाश्याम ।
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