जय श्री कृष्णा"
"वासुदेवः सर्वम्" सब कुछ एक भगवान् ही है...
'वासुदेवः सर्वम्'-यह गीता का सर्वोच्च सिद्धान्त है।
हमारी दृष्टि में 'सर्वम्' (संसार) की सत्ता है, इसलिए भगवान् ने हमें समझाने के लिए 'वासुदेवः सर्वम्' कहा है।
वास्तव में केवल वासुदेव-ही-वासुदेव है, 'सर्वम्' है ही नहीं ! कारण कि असत् होने से
'सर्वम्' की सत्ता विद्यमान ही नहीं है- 'नासतो विद्यते भावः' (गीता २ । १६)।
जैसे जिसके भीतर प्यास होती है, उसे ही जल दीखता है।
प्यास न हो तो जल सामने रहते हुए भी दीखता नहीं।
ऐसे ही जिसके भीतर परमात्मा की प्यास (लालसा) है, उसे परमात्मा दीखते हैं और जिसके भीतर संसार की प्यास है, उसे संसार
दीखता है।
परमात्मा की प्यास हो तो संसार लुप्त हो जाता है और संसार की प्यास हो तो परमात्मा लुप्त हो जाते हैं।
तात्पर्य है कि संसार की प्यास होने से संसार न होते हुए भी मृगमरीचिका की तरह दीखने लग जाता है और परमात्मा की प्यास होने से परमात्मा न दीखने पर भी दीखने लग जाते हैं।
परमात्मा की प्यास जाग्रत होने पर भक्त को भूतकाल का चिंतन नहीं होता, भविष्य की आशा नहीं रहती और वर्तमान में उसे प्राप्त किये बिना चैन नहीं पड़ता।
परम श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज (गीता-प्रबोधनी, अ० ७ । १९)
जय जय श्री राधे
No comments:
Post a Comment