गोपी
‘Q- लोग कहते है भगवान ने गोपियों के साथ लीला करके अनाचार फैलाया है?
ANS- भगवान की लीला पर विचार करते समय यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि भगवान का लीलाधाम, भगवान के लीला पात्र, भगवान का लीला शरीर, और उनकी लीला “प्राकृत” नहीं है, भगवान में देह-देहि का भेद नहीं है . भगवान की नित्य परमधाम में अभिन्नारूप से नित्य निवास करने वाली नित्यसिद्धा गोपियों की दृष्टि से न देखा जाये केवल साधनसिद्धा गोपियों की दृष्टि से देखा जाये तो भी उनकी तपस्या इतनी कठोर थी, उनकी लालसा इतनी अनन्य थी, उनका प्रेम इतना व्यापक था, और उनकी लगन इतनी सच्ची थी, कि प्रेमरसमय भगवान उनके इच्छानुसार उन्हे सुख पहुँचाने के लिये उनकी इच्छित पूजा को ग्रहण किया.
भगवान की नित्यसिद्धा चिदानंदमयी गोपियों के अतिरिक्त बहुत सी गोपियाँ और थी जो अपनी महान साधना के फलस्वरूप भगवान कि मुक्तजन-वांछित सेवा करने के लिये गोपियों के रूप में अवतीर्ण हुई थी. उनमे से कुछ पूर्वजन्म की देवकन्याये, कुछ श्रुतियाँ, कुछ तपस्वी ऋषि, कुछ अन्य भक्तजन थे, इनकी कथाये विभिन्न पुराणों में मिलती है. कुछ श्रुतिरूपा गोपियाँ है इनके नाम है -उद्गीता, सुगीता, कलगीता, कलकण्ठिका आदि .
भगवान के श्रीरामवातार में उन्हे देखकर मुग्ध होने वाले अपने आपको स्वरुप सौंदर्य पर न्यौछावर कर देने वाले सिद्ध ऋषिगण, जिनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हे गोपी होकर प्राप्त करने का वर दिया था, ब्रज में गोपीरूप से अवतीर्ण हुए थे. इनके अतिरिक्त मिथिला की गोपी, कोसल की गोपी, अयोध्या की गोपी,–पुलिन्दगोपी, रमावैकुण्ठ, श्वेतद्वीप, जालंधरी गोपी, आदि के अनेक यूथ थे .
पद्म पुराण के पाताल खंड में बहुत-से ऐसे ऋषियों का वर्णन है. जिन्होंने बड़ी कठिन तपस्या आदि करके अनेकों कल्पों के बाद गोपीस्वरूप को प्राप्त किया था. उनमे से कुछ के नाम निम्न है – एक ‘उग्रतपा’ नाम के ऋषि थे .उनकी तपस्या बड़ी अद्भुत थी .उन्होंने पंच्द्शाक्षर मंत्र का जाप और रसोन्मत्त नवकिशोर श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण का ध्यान किया था . सौ कल्पों के बाद वे सुनंद नामक गोप की कन्या “सुनंदा” हुए .
एक ‘सत्यतपा’ नाम के मुनि थे . वे सूखे पत्तों पर रहकर दशाक्षर मंत्र का जाप और श्रीराधा जी के दोनों हाथ पकड़कर नाचते हुए श्रीकृष्ण का ध्यान करते थे .दस कल्प के बाद वे सुभद्र नामक गोपी की कन्या “सुभद्रा” हुए .
'हरिधामा’ नाम के मुनि थे. वे निराहार रहकर ‘क्लीं’ कामबीज से युक्त विंशाक्षरी मंत्र का जाप करते थे और माधवीमंडप में कोमल-कोमल पत्तो की शय्या पर लेटे हुए युगल सरकार का ध्यान करते थे. तीन कल्पो के पश्चात वे सारंग नामक गोप के घर “रंगवेणी” नाम से अवतीर्ण हुए .
‘जाबालि’ नाम के एक ब्रहाज्ञानी ऋषि थे.उन्होंने एक बार विशाल वन में विचरते-विचरते एक जगह बावली के तट पर बड़ के नीचे एक तेजस्वनी युवती स्त्री कठोर तपस्य कर रही थी वह बड़ी सुन्दर थी, जाबालि के बड़ी नम्रता से पूछने पर उसने बताया – मै वह ब्रहाविधा हूँ , जिसे बड़े-बड़े योगी सदा ढूँढा करते है. मै श्रीकृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति के लिये इस घोर वन में उन पुरुषोत्तम का ध्यान करते हुई दीर्घ काल से तपस्या कर रही हूँ.
मै ब्रहानंद से परिपूर्ण हूँ, और मेरी बुद्धि भी उसी आनंद से परितृप्त है. परन्तु श्रीकृष्ण का प्रेम मुझे अभी प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मै अपने को शून्य देखती हूँ. जाबालि ने उनके चरणों में गिरकर दीक्षा ली और एक पैर से खड़े होकर बड़ी कठिन तपस्या करते रहे नौ कल्पों के बाद प्रचंड नामक गोप के घर वे “चित्रगंधा” के रूप में प्रकट हुए .
‘कुशध्वज’ नामक ब्रहार्षि के पुत्र शुचिश्रावा और सुवर्ण देवतत्व थे . उन्होंने शीर्षासन करके ही हस मंत्र का जाप किया करते थे और दस वर्ष की उम्र के भगवान का धयान करते हुए घोर तपस्या की कप के बाद वे ब्रज में सुधीर नामक गोप के घर उत्पन्न हुए .
इसी प्रकार और भी बहुत-सी गोपियों के पूर्वजन्म की कथाएँ प्राप्त होती है .भगवान की तपस्या करके जिन त्यागी भगवतप्रेमियों ने गोपियों का तन-मन प्राप्त किया, उनकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिये भगवान उनकी मनचाही लीला करते है, तो इसमें आश्चर्य की और अनाचार की कौन-सी बात है? सत्यजीत तृषित
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