Sunday, 22 November 2015

भक्ति में माँग नहीँ

भक्ति में कामना जरा भी नहीं रहती.....अगर भक्ति में कामना रहे, तो भक्ति का प्रश्न ही नहीं। अगर तुमने परमात्मा से कुछ मांगा, तो चूक गए...कुछ भी मांगा तो चूक गए। तुमने कहा कि मेरी पत्नी बीमार है ठीक हो जाए, कि मेरे बेटे को नौकरी नहीं लगती नौकरी लग जाए, तो समझो तुम चूक रहे हो...फिर यह प्रार्थना न रही, यह तो वासना हो गयी। भक्ति तो तभी है जब कोई भी मांग न हो, जब कोई अपेक्षा न हो, जब स्वयं का कोई विचार ही न हो, सब कुछ मौन में परिवर्तित हो जाये कहने को कुछ शेष रहे ही ना शब्द उनकी कृपा मेंविलीन हो जाये। भक्ति शुद्ध धन्यवाद है, मांग का सवाल ही नहीं है..जो दिया वह इतना ज्यादा है कि हम अनुगृहीत हैं। जो दिया, वह हमारी पात्रता से कहीँ अधिक है, जिस संसार सागर के गर्त में हम गिरे हुए है हम तो जरा सी कृपा के अधिकारी भी नहीँ फिर भी हम भक्ति के अधिकारी हुए ये उनकी कृपा नही तो और क्या है।ऐसी कृतज्ञता का नाम ही तो भक्ति है, भक्ति सौ प्रतिशत प्रीति है..!जय जय श्री राधे कृष्णा

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