Sunday, 22 November 2015

भगवत्कृपा

भक्ति के लिये एक शब्द है ...
केवल   * भगवत्कृपा* 
ही मूल है .वहीं औषधी है .

वहीं मार्ग वहीं मंज़िल ...
वो चाहे तो हूर को नूर कर 
दें | ...
उनको वहीं चाहते है ...
जिसे वो चाहे , वहीं दर्शन वहीं 
प्रेम - मार्ग पर चल पाते है 
...
वरन् भक्त के जीवन के कष्ट 
सामान्य जीवन के लिये 
दुष्कर ही है … सामान्य
जन उन्हें नहीं सह सकते 
पर भक्त का ध्यान कष्ट पर 
ना हो उनके चरणारविन्द पर 
होता है सो ख़्याल ही नहीं 
आता कि दु: ख भी है क्या ?
और यें सब होता उनकी 
कृपा से है ...
सभी उनसे मिलना चाहते है
पर वो किससे मिलेंगें यें वही
तय करते है | ...
हाँ मार्ग प्रेम का होता है 
शुरुआत सत्संग से पर 
होता सब उनकी ही कृपा से 
है ...
राम कृपा बिन सुलभ न सोई !! सत्यजीत

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